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सूत्रे
सुरेन्द्रादी... नां शिविका वहनम्
१२॥
कम ऊपर-अधर में, धीरे-धीरे, उस पुरुषसहस्त्रबाहिनी (हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य) चन्द्रप्रभा नामक पालकी को ठहराया। तदनन्तर श्रमण भगवान् महावीर उस शिविका में से धीरे धीरे उतरे। उतर कर श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्वदिशा में मुख करके विराजमान हुए। तत्पश्चात् भगवान वीर प्रभु उत्तर-पूर्व दिशा के अन्तराल में ईशानकोण में पधारे। पधारकर हार, अर्धहार आदि समस्त अलंकारों को उतारने लगे। तब वैश्रवण देव उडते जन्तु की तरह अचानक आपहुंचे और उन्होंने हंस के समान उजले श्वेत वस्त्र में उन अलंकारों को ले लिये ॥४०॥ - मूलम्-तेणं कालेणं तेणं समएणं जेसे हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिरबहुलस्स दसमीए तिहीए सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं चंदेणं जोगमुवगएणं पाईण गामिणिए छायाए बियत्ताए पोरिसीए छद्रेणं भत्तेणं अपाणएणं भगवं महावीरे दाहिणणं
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॥१७२३॥