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________________ कल्पसूत्रे सशब्दार्थे भगवतो ववाहः स्वजनवर्णनंच ॥१४७॥ [णवंगसुत्तपडिबोहियं] नौ-अंग-दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, जिह्वा, त्वचा और मन बाल्यावस्था के कारण जो सोये-से थे-अव्यक्त चेतनावाले थे उन्हें जागृत हुए [जाणिय] जानकर अर्थात् यौवन अवस्था को प्राप्त हुआ जानकर [अम्पापियरो] मातापिता ने [सागेयपुराहिवस्स समरवीरस्स रन्नो धूयाए] साकेतपुर के राजा समरवीर की कन्या, एवं [धारिणीए देवीए अंगजायाए जसोयाए राजवरकन्नाए पाणिं गिहाविंसु] धारिणी| देवी की अंगजात 'यशोदा' नामक श्रेष्ठ राजकन्या के साथ पाणिग्रहण-विवाह कराया। [तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स] पश्चात् श्रमण भगवान महावीर के | [पियदंसणेति नामं धूया जाया] घर प्रियदर्शना नामक कन्या का जन्म हुआ [सा च जोव्वणगमणुपत्ता] जब वह युवा हुइ तो [सयस्स भाइणिज्जस्स जमालिस्स दिन्ना] भगवान ने उसे अपने भागिनेय-भानजे जमाली को दी-जमाली के साथ उसका विवाह कर दिया [तीसे पियदसणाए धूया सेसवईति नामं जाया] उस प्रियदर्शना नामकी ॥१४७॥
SR No.009361
Book TitleKalpsutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages912
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size49 MB
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