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पपत्रे -त्ति कटु तप्पडिच्छं करीअ] अभी मेरे पास आनेवाला है, ऐसा सोचकर उसकी भगवत समन्दार्ये
कलाचार्यप्रतीक्षा करने लगा किन्तु खंडिय कलामंडिओ पंडिओ कि अखंडकलामंडियं तं
समीपे पुरिसुत्तमं] किन्तु थोडी सी कला को जाननेवाला पण्डित सकल कलाओं से सुशोभित । प्रस्थानादि
वर्णनम् [सयलाणवज्जविज्जा अहिदाइ देवया विहेय वंदणं भयवं पाढिउं सकिज्जा ?] समस्त
समीचीन विद्याओं के अधिष्ठायक देवोंद्वारा वन्दना करने योग्य त्रिशला तनय पुरु॥ षोत्तम भगवान् को क्या पढ़ा सकता था ? [परिसुद्धं कंचणं किं सोहिज्जा ?] पूर्णरूप से । । शुद्ध सुवर्ण को क्या शोधा जाता है ? नहीं क्योंकि वह स्वयं शुद्ध है [अंबतरूतोरणेहिं ।
किं अलंकरिज्जा ?] क्या आम के वृक्ष को तोरणों से सजाया जाता है ? नहीं कारण वह । ....पत्तों से सजा हुआ है [अमयं महुरदव्वेहिं किं वासिज्जा ?] क्या अमृत को मधुर द्रव्यों से
वासित किया जाता है नहीं कारण अमृत स्वयं मधुर है [सरस्सई पाठविहिं किं सिक्खिजा?] शारदा देवी को क्या पाठविधि सीखाइ जाती है ? नहीं कारण यह स्वयं शिक्षित है।