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________________ ४२२ - , श्री दशाश्रुतस्कन्धसूत्रे कपोषधातिथिसंविभागाख्यानि, व्रतानि-पश्चाणुव्रतानि, गुणा: त्रीणि गुणव्रतानि, विरमणं-मिथ्यात्वानिवर्तनम् , प्रत्याख्यान-पर्वदिने त्याज्यानां त्यागः, पोष. धोपवास:=पोषं-पुष्टि-धर्मस्य वृद्धिमिति यावत् धत्ते इति पोपधः-अष्टमीचतु. दशीपूर्णिमाऽमावास्यादिपर्वदिनाऽनुष्ठेयो व्रतविशेषः स चाऽऽहार-शरीर-सत्कारत्याग-ब्रह्मचर्या-व्यापारभेदाच्चतुर्विधः, उपवासः अनशनम् , एतेपामितरेतरयोगद्वन्द्वे ते, तान् प्रतिपधेत स्वीकुर्यात्-अनुष्टयतयाऽऽलम्बेत ? इति प्रश्नः, भगवानाह-अयमर्थः शीलवतादिस्त्रीकाररूपोऽर्थः न समर्थः-न युक्त्योपपन्नः शीलव्रतादिकं न स्वीकरोतीत्यर्थः । किन्तु स खलु दर्शनश्रीवकः-दर्शनं सम्यत्वम् , तत्प्रधानः श्रावको भवति ॥ मू० ४६ ।। सामायिक देशावकाशिक पौषध और अतिथिसंविभाग, इनको शील कहते हैं । पाच अणुव्रतो को व्रत कहते हैं। तीन गुणवृतों को गुण कहते हैं । मिथ्यात्व से निवृत्ति करना विरमण कहा जाता है । पर्वेदिन में त्याज्य वस्तुओं का त्याग प्रत्याख्यान कहा जाता है । 'पोष' का अर्थ होता है कि धर्म की पुष्टि, धर्म की वृद्धि, उसको 'धत्ते' अर्थात करता है उसको पोषध कहते हैं। अष्टमी चतुर्दशी पूर्णिमा अमावास्या आदि पर्व दिनों में जो व्रत किया जाता है वह 'पोषध' कहा जाता है । उसके चार भेद हैं। आहारत्यागपोषध १, शरीरसत्कारत्याग पोषध २, ब्रह्मचर्य-पोषध ३, और अव्यापारपोषध ४ । अनशन को उपवास कहते हैं। ऐसे शील आदि व्रतों को नहीं धारण करता है । वह केवल दर्शनश्रावक होता है। सम्यक्त्वप्रधान श्रावक दर्शनश्रावक कहाता है ॥ सू० ४६ ॥ કરી નથી શકતે સામાયિક દેશાવકાશિક પિષધ અને અતિથિસ વિભાગ, એને શીલ કહે છે. પાચ અણુવ્રતોને વ્રત કહે છે. ત્રણ ગુણવ્રતને ગુણ કહે છે મિથ્યાત્વથી નિવૃત્તિ કરવી તે વિરમણ કહેવાય છે. પર્વદિનમાં ત્યાજ્ય વસ્તુઓને ત્યાગ એ प्रत्याभ्यान वाय छे 'पोष' नामर्थ थाय छे धनी पुष्टि, धर्मनी वृद्धि तेने 'धत्ते' अर्थात् ४२ छ तेने पोषध ४९ छ भटभी यतुशी पूर्णिमा अमावास्या माहि 4 हनम रे 'त' ४२वामां आवे छे तर 'पोषध' पाय छे. तेना यार प्रा२ छ (१) महार त्याग-पोषध (२) शरीरस४२त्याग-पोषध (3) प्राय:પિષધ અને (૪) અવ્યાપાર-પિષધ, અનશનને ઉપવાસ કહેવાય છે. એવાં શીલ. આદિ વ્રતને ધારણ કરતું નથી, તે કેવલ દર્શનશ્રાવક થાય છે. સમ્યક્ત્વપ્રધાન श्राप शनाप उपाय छ (सू. ४६)
SR No.009359
Book TitleDashashrut Skandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages497
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size26 MB
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