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दशाश्रुतस्कन्धमत्रे ज्जयिना भवति, उष्णोदकविकटेन-तप्तजलविकरालेन कार्य-शरीरं सेक्ता-प्रक्षेप्ता भवति, अग्निकायेन वह्निना कायमुद्दग्धा-भस्मीकर्ता भवति, योक्त्रेण-पभादिसंयोजनरज्ज्वा, 'वा' शब्दाः सर्वत्र वाक्यालङ्कारे, वेत्रेण-जलवंगेन वन्जुलेनेति यावत् नेत्रेण दधिमन्थनदण्डरज्ज्वा, कगया अश्वादिताडन्या चर्मयष्टया, छियाडिकया-बल्लकादिवृक्षफलिकया, यस्या बीजे निःसारिते खडाकारं कोशद्वयं भवति सा फलिका वल्लकादिवृक्षाणां भवति, तया फलिकया, लतया वृक्षबल्लया पार्थानि-शरीरस्य बाम-दक्षिणभागान्-उबालयिता-तत्रत्य त्वक्चर्माणि उत्पाटयिता भवति, दण्डेन-लकुटेन चा, अस्ना=('दृड्डी' इति भाषायां ख्यातेन) मुष्टिना वा, लेष्टुकेन-लोष्ठेन पृथ्वीखण्डे नेति यावत् कपालेन-माण्डखण्डेन वा कायम् आकुट्टिता-शरीरस्य छेदन-भेदन-व्यापारकर्ता भवति । तथा प्रकारे=
अब दण्ड का वर्णन करते हैं-'सीओदग०' इत्यादि ।
वह नास्तिकवादी शोत ऋतु में अत्यन्त ठंडे जलसे भरे हुए जलाशय में उन को इबाता है । अत्यन्त गर्म जल उनके शरीर पर छिडकता है, उनके शरीर को अग्नि से जलाता है। जोत्तण -- वृषभ
आदि का संयोजन करने के साधन को जोतर कहते हैं । वेत्तेण-- बेंत, नेत्तेण-नेतर-दही मथने की डोरी । कसेण-चमडे का चावुक, इन सब से मारता है । तथा छिवाडीए-बल्लक वृक्ष की फली को छिवाडी कहते हैं, चीरने पर उसके दोनों भाग तलवार की धार जैसे तीखे होजाते हैं, उन से, तथा लयाए-किसी वृक्ष की लता से शरीर के दोनों पसवाडे का चमडा उधेड देता है। तथा दंडेण--लाठी, अद्विणाहड्डी, और मुट्ठिणा--मुष्टि से लेलुएण- ढेला, कवालेण-घडे के टुकडे, अ नु न ४२ छ- 'सीओदग.' त्या
આ નાસ્તિકવાદી શીતઋતુમાં અત્યન્ત ઠંડા પાણીથી ભરેલા જળાશયમાં તેમને ડુબાડે છે તેમના શરીર ઉપર અત્યન્ત ગરમ પાણી છાટે છે તેમના શરીરને अनिथी. जे छ जोत्तेण-७६ मानि मा नेवासा साधन त२ छ वेत्तेण-तरनी छडी नेत्तेण-नेत३ मया ही पानी होरी कसेण यामाने। ચાબુક, એ બધાથી મારે છે તથા છિણિી વલલક વૃક્ષની ફલીને છિવાડી કહે છે, તેને ચીરવાથી તેના બેઉ ભાગ તરવારની ધાર જેવા તીણ થઈ જાય છે તેનાથી તથા लयाए , वृक्षनी तथा शरीर मे ५७मातु याम मे नाणे , तथा दंडेण साडी अट्टिणा ७४४i भने मुहिणा मुहीमे लेलुएण ढमा कबालेण डान