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दशाश्रुतस्कन्ध
स्वरूपनामजात्यादिकल्पनारहितस्य सामान्यस्याऽनिर्देश्यस्य वस्तुनो निर्णायकं ज्ञानमवग्रहः, अव्यक्तं ज्ञानमिति यावत् स एव मतिसम्पत् । २ ईहामतिसम्पत् - ईहनमीडा = चेष्टा - निश्चयविशेप जिज्ञासेत्यर्थः स्वरूपनामजात्यादि कल्पनारहित सामान्यपदार्थज्ञानानन्तरं विशेषज्ञानेच्छा, यथा-गाढान्धकारे सतोरप्यायतलोच नयोरन्धायमानस्य पुंसः स्पर्शनेन्द्रियेण स्पर्शसामान्ये ज्ञाते सति ' कीदृशोऽयं (२) ईहामतिसम्पदा (३) अवायमतिसम्पदा (४) धारणामतिसम्पदा । इस रीति से चार प्रकार की मतिसम्पदा है ॥
१ अवग्रहमतिसम्पदा - अवग्रहण को अवग्रह कहते हैं अर्थात् सामान्य अर्थका ज्ञान होना अवग्रह कहा जाता है । और भी स्पष्टतया कहा जाय तो यह कह सकते हैं कि - स्पर्शन आदि इन्द्रिय से उत्पन्न हुआ स्वरूप नाम और जाति आदि की कल्पना से रहित सामान्य का जो कि 'यह ऐसा ही है' इस रीति से अनिर्देश्य जिसका निर्देश नहीं किया जा सके, ऐसी वस्तु का निर्णय करने वाला ज्ञान अवग्रह कहा जाता है । अव्यक्त ज्ञान ही अवग्रहमतिसम्पत् कहा जाता है । २ ईहामतिसम्पदा - ईहन को ईहा कहते हैं । ईहा का अर्थ होता है चेष्टा निश्चयविशेष की जिज्ञासा । स्वरूप नाम जाति आदि कल्पनारहित सामान्य पदार्थ के ज्ञान के बाद विशेष ज्ञान की इच्छा । जैसे कि - अत्यन्त अन्धकार में बडे नेत्र होने पर भी अन्ध जैसे पुरुष की स्पर्शन इन्द्रिय से स्पर्शसामान्य का ज्ञान होने पर भी 'यह मतिसम्पदा मे रीते यार प्रहारनी भतिसम्पदा छे.
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(१) अवग्रहमतिसम्पदा भवने भवग्रह उडे छे, अर्थात् सामान्य અનુ જ્ઞાન હોવુ તે અવગ્રહ કહેવાય છે છતા પણુ વધારે સ્પષ્ટતાથી કહીએ તે એમ કહી શકાય છે કે સ્પર્શીન આદિ ઇન્દ્રિયથી ઉત્પન્ન થતા સ્વરૂપ નામ તથા જાતિ આદિની ૫નાથી રહિત સામાન્યને-જેમ કે આ એવેાજ છે’ એવી રીતે અનિર્દેશ્યજેને નિર્દેશ નથી કરવામા આવતા, એવી વસ્તુના નિર્ણય કરવાવાળુ જ્ઞાન અવગ્રહ કહેવાય છે અન્યકત જ્ઞાન જ અવગ્રહમતિસમ્પન્ કહેવાય છે
(२) ईहामतिसम्पदा डन ने हाउडेछे हानो अर्थ थाय छे थेष्टा, નિશ્ચયવિશેષની જીજ્ઞાસા, સ્વરૂપ, નામ, જાતિ આદિ કલ્પનારહિત સામાન્ય પદાર્થના જ્ઞાનની પછી વિશેષ જ્ઞાનની ઇચ્છા જેમ કે-અત્યન્ત અન્ધકારમાં માટી આખા હાય છતા પણ આધળા જેવા પુરુષની સ્પર્શેન ઇન્દ્રિયથી સ્પર્શીસામાન્યનું જ્ઞાન હોવા છતા