SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और दोनो हाथो में तलवार लेकर पटेल सेना का कड़ाई के साथ सामना करने लगा। पटेल सेना उस वीर सेनानी का सामना न कर सकी । अपनी सेना के एक एक वीर को मरता देख वह वहां से भाग गई गलंडियाँ वीर विजयी हुआ। राजपूत इस ओसवाल वीर सेनानी के रणकौशल को देखकर दंग रह गये । उसकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे। शाह कल्लोजी के वंश में शा, शूरोजी बडे प्रसिद्ध व्यक्ति हो गये । आप वढे उदार चरित्र वाले तथा दानी सज्जन थे। कहते हैं कि मंडोर के प्रधान भण्डारी समरो जी को मांडू के बादशाह ने पकड़ कर कैद कर लिया था। उस समय उसे अठारह लाख रुपये देकर सूरोजी ने छुडवाया । सूरोजी के लिये इस परिवार में ऐसी भी एक किवंदती चली आती है कि 'एक बार जगन हजारी नाम का सुप्रसिद्ध मांत्रिक (चारण) दिल्ली में रहता था। उसका यह नियम था कि जो एक लाख रुपया भेंट करे वह उसी के घर भोजन करता था। भामाशाह की माता ने तीन बार जगन हजारी को जिमाया और प्रत्येक बार एक-एक लाख रुपयो की दक्षिणा दी। एक बार जगन हजारो को भामाशाह की माता ने कहा-जगन हजारी जी ! क्या मेरा जैसा एक लाख रुपये दक्षिणा देकर जीमाने वाला घर आपने अन्यत्र भी कहीं देखा है। हजारोजी ने झट उत्तर देते हुए कहा- सेठानी जी ! ससार केवल एक दानी पर नहीं चलता। संसार में एक से एक महापुरुष पड़े है । उन्हे खोजने का हमारे पास समय नहीं । फिर भी अवसर आने पर ऐसे व्यक्ति को अवश्य बताऊँगा । सेठानी ने कहा---यदि ऐसा ही है मैं उस दानी सज्जन का अवश्य दर्शन करूँगी। और उस व्यक्ति के दान से चौगुना दान आपको दूंगी। जगनहजारी वहाँ से चल दिया । वहाँ से जब चले तो रास्ते में सोच ही रहे थे कि किसके पास चलूं। तव तक रास्ते में हरी भरी सस्यश्यामला दिगन्त व्यापी खेती के ऊपर उनकी दृष्टि आकृष्ट हो गई। सुन्दर कूँवा देखकर बोले-यह कौन सा गाम है, और इन क्षेत्रो का कौन सौभाग्यशाली मालिक है ? किसीने बतलाया-आपको मालूम नहीं यह 'गर्लंड' ग्राम है, यहाँ के मालिक युद्धवीर के वंशज दानवोर सूराजी हैं सूराजी का नाम सुनते ही हजारी जी बोले-अरे ? सूराजी? तब क्या है, ये तो अपने ही यजमान हैं। इन घोड़ों को इस सस्य में छोड़ दो। तुम लोग नहाओ घोओ। इनके साथ ३०० सौ घुड़सवार चलते रहते थे, इनके वे ३०० सौ घोड़े छोड़ दिये और सब कोई नहाने लगे। इस तरह इनको मन मानी कार्यवाही देख कर रक्षको ने सूराजी को सूचना दी। वे बोले–मै आता हूँ। तुम जाकर उनसे प्रार्थना करो १ जिसके देवत्ता भाराधित हो वह ऐसा दृश्य दिखा सकता है ।
SR No.009358
Book TitleVyavaharasutram evam Bruhatkalpsutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, & agam_vyavahara
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy