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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, चन्दनपादपोद्यानवर्णनम्.
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पातिकसूत्राच्चम्पानगरीवद् बोध्यः । ' तस्स णं मियागामस्स गयरस्स' तस्य खलु मृगाग्रामस्य नगरस्य 'बहिया' वहि: बाह्यप्रदेशे 'उत्तरपुरत्थि मे दिसीमाएं' उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे=ईशानकोणे, 'चंदणपायवे णामं उज्जाणे' चन्दनपादपनामकमुद्यानम् ' होत्था' आसीत्, तत् कीदृश ? - मित्याह - 'सव्बोउय० वष्णओ' सार्वर्त्तुक० वर्णकः–चन्दनपादपोद्यानस्य वर्णन सार्वर्त्तुक० - इत्यादि विज्ञेयं, तथाहि'सव्वोउयपुष्पफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे परूि वे' सार्वर्तुकपुष्पफलसमृद्धं रम्यं नन्दनवनप्रकाशं प्रासादीयं दर्शनीयम् अभिरूपं प्रतिरूपम् - इति । तत्र सार्वर्त्तकपुष्पफलसमृद्धस् - सार्वर्त्तुकानि = वसन्तादिसर्वऋतुसम्बन्धीनि यानि पुष्पफलानि तैः समृद्धं रम्यं = रमणीयम्, नन्दनवन - प्रकाशं=नन्दनवनतुल्यं, प्रासादीयादिपदानामर्थाः पूर्ववद् बोध्याः । ' तत्थ णं चंपानगरी जिस प्रकार की अद्भुत शोभा आदि गुणों से विशिष्ट
उसी प्रकार से यह नगर भी अपने अनुपम सौन्दर्य से युक्त 1 ' तस्स णं मियागामस्स गयरस्स' उस मृगाग्राम नामके नगर के 'बहिया' बाह्यप्रदेश में 'उत्तर - पुरत्थिमे दिसीभाए ' उत्तर और पूर्वदिशा के भाग - ईशान कोण में ' चंदणपायवे णामं उज्जाणे होत्था' चंदनपादप नाम का एक उद्यान- बगीचा था । 'सव्वोउय वण्णओ' इसका वर्णन इस प्रकार समझना चाहिये, ( सव्वाउयपुष्पफलसमिद्धे रम्मे नंदवणगासे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ) यह समस्तऋतुसंबंधी पुष्प और फलों से सदा हरा-भरा बना रहता था । अनेक जाति के सुगंधित फूलों से यह सुरम्य और इन्द्र के नंदनवन जैसा मन को आनंदित करने वाला, प्रासादीय, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था । ' तत्थ णं चंदणपायदस्स बहुमज्झदेसभाए '
अनुषंभ सौन्दर्यथी युक्त छे. ( तस्स णं मियागामस्स णयरस्त ) मा भृगाश्राम नामना नगरभां (वहिया) मा अहेशभां (उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए) उत्तर भने पूर्व हिशाना लाग-शान अणु-भां (चंदणपायवे णामं उज्जाणे होत्था ) यनथाहय नामनो मे उद्यान- नगीयो हतो, ते (सव्वोउय० वण्णओ) भानुं वार्जुन आ अक्षरे लघुवु छो, (सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे रम्मे नंदणवणप्पगासे पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे ) तमाम ऋतुनां पुष्यो भने पोथी ते अगीयो હમેશા ભરપૂર હતા, અનેક જાતિના સુગંધિત ફૂલેાથી તે સુરમ્ય અને ઇન્દ્રના નંદનવન प्रमाणे भनने मानन्छ आपनारी, आसाहीय, दर्शनीय, अभिय भने अति हता.