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........विपाकश्रुते
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सुखासनवरगतायां-स्वासने यथासुखमुपविष्टायां सत्यां तो पच्छा' ततः पश्चात् तदनन्तरं मातृसेवानन्तरं स पुष्पनन्दी राजा 'हाइ स्नाति-स्वयं स्नानं करोति, 'भुंजइ वा भुने च भोजनं करोति, तथा 'उरालाई उदारान् श्रेष्ठान 'माणुस्सगाई' मानुष्यकान्मनुष्यसम्बन्धिनो ‘भोग भोगाई : भोगभोगान्-शब्दादिविषयान् 'मुंजमाणे विहरई' भुञ्जानो विहरति-तिष्ठति ॥ मू० १६ ॥
॥ मूलम् ॥ तए णं तीसे देवदत्ताए देवीए अण्णया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुवजागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे अन्झथिए४ सुमुप्पज्जित्था एवं खलु पूसणंदी राया सिरीदेवीए माईए भत्ते जाव विहरइ तं एएणं विघाएणं णो संचाएमि अहं पूसणंदिणा रणा सद्धिं उरालाइं० भुंजमाणी विहरत्तिए, तं सेयं खलु मम सिरि देवि अग्गिप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्तए । एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सिरिए देवीए अंतराणि य३ पडिजागरमाणी२ विहरइ ॥ सू० १७॥
टीका 'तए णं तीसे इत्यादि । 'तए णं ततः खलु तीसे देवदत्ताए देवीएं' लेने पर एवं सुखासन पर विराजमान हो जाने पर 'तओ पच्छा' उसके बाद राजा पुष्पनंदी पहाड भुंजइ वा स्नान करता और भोजन करता । और 'उरालाई माणुम्सगाई भोगमोगाई भुंजमाणे विहरइ उदार मनुष्य संबंधी कामभोगों को भोगता था ॥ सू० १६॥
'तए ण तीसे इत्यादि ।
'तए णं कुछ समय के बाद तीसे देवदत्ताए देवीए' उस भान यतi ता, 'तो पच्छा' पछी सन्त पनाही 'हाई भुजई वा स्नान ३२ता भने मागन ता भने 'उरालाई माणुस्सगाई भोगभागाइं जमाणे बिहरहा मनुष्य समाधी मलागाने मागवता ता. ॥ सू० १६ ॥
'तए णं तीसे प्रत्यादि. 'तए णं' at समय पछी 'तीसे देवदत्ताए देवीए ' त हेपत्ता