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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ९, देवदत्तावर्णनम् ६७१ ततः खलु स पुष्पनन्दिकुमारः 'देवदत्ताए भारियाए सद्धिं' देवदत्तया भार्यया सार्धम् 'उप्पि' उपरि 'पासायवरगए' प्रासादवरगतः ‘फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहि' स्फुटयमानैर्मृदङ्गमस्तकैः वाद्यमानैमृदङ्गैः 'बत्तीसइबद्धनाडएहि' द्वात्रिंशद्वद्धनाटकैद्वात्रिंशद्वद्धैः द्वात्रिंशत्प्रकारकैः- द्वात्रिंशत्पात्रनिबद्धैश्च नाटकैः ‘उवगिज्जमाणे२'उपगीयमान उपगीयमानः 'जाव' यावत्-उपलाल्यमानः२ शब्दस्पर्शरसरूपगन्धरूपान् विपुलान् मानुष्यकान कामभोगान् प्रत्यनुभवन् 'विहरइ' विहरति । 'तए णं से वेसमणे राया' ततः खलु स वैश्रवणो राजा 'अण्णया कयाई' अन्यदा कदाचित् 'कालधम्मुणा संजुत्ते' कालधर्मेण संयुक्तः=मृतः। ‘णीहरणं' निर्हरणं= श्मशान भूमौ नयन स्वराज्योचितऋद्धिसत्कारसमुदयेन संपादितम् । 'जाव' यावत्-लौकिकानि मरणकृत्यानि कृत्वा कालेनाल्पशोको जातः । 'राया जाए' राजा जाता-पितुः पदं नृपासनमारूढः, राज्याभिषेक प्राप्त इत्यर्थः। 'तए णं' 'देयदत्ताए भारियाए' देवदत्ता भार्या के साथ 'उप्पि पासायवरगए' ऊपर प्रासाद पर रह कर 'फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहि' बज रहे हैं श्रेष्ठ मृदंग जिन में ऐसे 'वत्तीसइबद्धनाडएहि' बत्तीस प्रकार के नाटकों द्वारा कि जो भिन्नर बत्तीस प्रकार के पात्रों द्वारा खेले जाते थे 'उवगिज्जमाणे२' प्रशंशित होता हुआ 'जाव विहरइ' शब्द-रूप-गंध-रस-और स्पर्शविषयक विपुल मनुष्यसंबंधी कामभोगों को भोगने लगा । 'तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते' किसी एक समय की बात है कि वैश्रवण राजा कालधर्म को प्राप्त हुआ। णीहरणं जाव राया । जाए' पुष्पनंदिकुमार ने अपने पिता की श्मशानयात्रा खूब गाजे बाजे के साथ निकाली। मृत्यु अवसर के समस्त कृत्यों से निश्चिन्त होकर अब वह स्वयं राजा बन गया । 'तए णं से पूसणदी राया सिरीदेवीए भारियाए ' देवता मानी साथे 'उप्पि पासायवरगए ' भडसना ५२ना भागमा २डीने 'फट्टमाणेहि मुइंगमत्थएहिं । भा श्रेष्ठ भृग पाणी २॥ छ. सेवा 'वत्तीसइवद्धनाडएहिं त्रीश प्रसाना नाटीद्वारा ४२पामा मापता भिन्न-भिन्न पत्रीस प्रा२ना पात्री द्वारा नाट मरवातुं तु 'उबगिज्जमाणे२' प्रशसित मनाने 'जाव विहरइ ' श६, ३५, गध, २स भने २५ विषय [aye मनुष्य संधी -- भिमागाने लोगवा साया 'तए णं से वेसमणे राया अण्णया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते 15 ४ समयनी वात छे , वैश्रवण २in Alk (भ२). पाभी गया 'णीहरणं जाव राया जाए पन ही मारे पोताना पितानी स्मशान ચાત્રા ખૂબ ગાજતે-વાજતે કાઢી મૃત્યુ પછીના સમસ્ત કાર્યો કરી નિશ્ચિત્ત બનીને ७२ पछी पाते on ना गया. तए णं से पूसणंदी राया सिरीदेवीए मायाए
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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