________________
५७८
विपाकश्रुते टीका 'तए णं से' इत्यादि। .
'तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे' ततः खलु स सागरदत्तः सार्थवाहः 'जहा विजयमित्ते' यथा विजयमित्रा अत्रैव द्वितीयाध्ययनोक्तविजयमित्रसार्थवाहवत्-लवण-समुद्रमध्ये 'कालधम्मुणा संजुत्ते कालधर्मेण संयुक्तो जातः मृत इत्यर्थः, 'गंगादत्ता वि' गङ्गदत्तापि-सागरदत्तस्य भार्या गङ्गदत्तापि लक्ष्मीविनाशं पोतविनाशं पतिमरणं चानुचिन्तयन्ती२ कालधर्मेण संयुक्ता जाता-मृता 'उंवरदत्ते' स उदुम्बरदतो दारकः 'निच्छुढे' निक्षिप्तः-स्त्रकाद् गृहाद् निष्कासितः . 'जहाउज्झियए' यथा उज्झितका उज्झितकवत् । ततः खलु स उदुम्बरदतो दारकः स्वकाद् गृहानिसृतः सन् पाटलिपण्डे नगरे शृङ्गाटकत्रिकचतुष्कचत्वरमहापथपथेषु परिभ्रमति । . 'तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे०' इत्यादि ।
'तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे किसी एक समय की बात है कि वह सागरदत्त सार्थवाह 'जहा विजय मित्ते' द्वितीय अध्ययन में वर्णित विजयमित्र सार्थवाह की तरह 'कालधम्मुणा संजुत्ते' लवण समुद्र में डूब कर मर गया। 'गंगदत्तावि' गंगदत्ता भी अपने पति का अचानक मरण सुन कर एवं जहाज के लवण समुद्र में डूब जाने से समस्त लक्ष्मी का विनाश जान कर दुखित हो मर गई 'उंवरदत्ते निच्छूटे' वहाँ के राजपुरुषों ने उदुम्बरदत्त को चाल-चलन से भ्रष्ट होने के कारण 'जहा उज्झियए' पूर्व में वर्णित उज्झित दारक की तरह घर से बाहर निकाल दिया । 'तए णं तस्स उंवरदत्तस्स दारगस्स अण्णया कयाई सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउठभूया' घर से बहार निकाला
'तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे.' त्यादि.
'तए णं से सागरदत्ते सत्थवाहे' ४ समयनी वात छे ते सारइत्त सार्थ वा 'जहा विजयमित्ते' मी मध्ययनमा पति वियभित्र सार्थ वा प्रभारी 'कालधम्मुणा. संजुत्ते' सब समुद्रमा मीने भर पाभ्यो, 'गंगदत्तावि' महत्ता પણ પિતાના પતિનું અચાનક મૃત્યુ સાંભળીને તથા લવણ સમુદ્રમાં વહાણ ડૂબી જવાથી तमाम सक्षमीना नाश २७ गयो ने भीत थइने भ२ पाभी 'उंबरदते निच्छूढे' त्यांना पुरुषोये १२त्तनी यास-यसगत भ्रष्ट डावाना आयो 'जहा उज्झियए Glorst .२४ प्रमाणे घRथी २ बढी मूल्यो, 'तए णं तस्स उंवरदत्तस्स दारंगस्स अण्णया कयाई सरीरगंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायंका पाउन्भूया'.