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________________ ५७० . विपाकश्रुते तं विउलं असणं४ सुरं च५ सुबहुपुप्फ० परिगिण्हावेइ, परिगिण्हावित्ता बहुहिं जाव परिवुडा जेणेव पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पुक्खरिणी ओगाहेइ, ओगाहित्ता पहाया जाव पायच्छित्ता पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरइ । तए णं ताओ मित्त जाव महिलाओ गंगदत्तं सत्थवाहं मल्लालंकारविभूसियं करेंति, तए णं ला गंगदत्ता भारिया ताहि मित्तजाव अण्णाहिं बहुर्हि नयरमहिलाहिं सद्धिं तं विउलं अलणं४ सुरंच५ आसाएमाणी४ दोहलं विणेइ, विणित्ता जामेव दिसि पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। तए णं सा गंगदत्ता भारिया पसस्थदोहला तं गम्भं सुहंसुहेणं परिवहइ । तए णं सा गंगदत्ता भारिया णवण्हं मासाणं बहुपडियुग्णाणं जाव दारयं पयायाट्रिइ जाव नामे जम्हाणं अम्हं इमे दारए उंबरदत्तस्स जक्खस्स उवयाइयलद्धए तं होउ णं इमे दारए उंबरदत्ते नामेणं । तए णं से उंबरदत्ते दारए पंचधाईपरिग्गहिए जाव परिवडइ ॥सू० ८॥ टीका 'तए णं से धण्णंतरी वेज्जे' इत्यादि । 'तए णं से' ततः खलु स 'धण्णंतरी वेज्जे' धन्वन्तरिर्वद्यः 'ताओ नरगाओ' तस्मात् नरकात्=पष्ठयाः पृथिव्याः 'अणंतरं' अनन्तरम् पश्चात् 'उवहित्ता' उद्धृत्य=निस्सृत्य 'इहेव' अत्रैव 'जंबूद्दीवे दीवे' जम्बूद्वीपे द्वीपे-जम्बू 'तए णं से धणंतरी वेज्जे' इत्यादि । 'तए णं' एक समय की बात है कि 'से धणंतरी वेज्जे उस धन्वंतरी वैद्य का जीव 'ताओ नरगाओ' उस छठे नरक से "अणंतरं' अपनी भवस्थिति पूर्ण होते ही 'उव्वट्टित्ता' निकल कर 'इहेव जंबूद्दीवे 'तए णं से धणंतरी वेज्जे०' त्याह. 'तए पं' से सभयनी पात से धण्णंतरी वेज्जे' ते पती वधनी छ 'ताओ नरगाओ' ते ७४ी न२४थी 'अणंतरं' पातानी सपस्थिति पूरी Anire 'उवटित्ता' नादान इहेव जंबूद्दीवे दीवे भारहे. वासे पाइलिसंडे णयरे
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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