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विपाकश्रुते वमन्तम्-मुखादुगिरन्तं 'कट्ठाई' कष्टानि-कष्टकराणि, दर्शकजनमनोव्यथाजनकानि 'कलुणाई करुणानि-करुणारसोत्पादकानि वीसराई' विस्वराणि-दुःस्वराणि वचनानि 'कूयमाणं' कूजन्तम् अव्यक्तमुच्चरन्तं शेषं प्रथमाध्ययनवत्-नवरं-विशेषस्त्वयम्, 'मच्छियाचडगरपहगरेणं' मक्षिकाचटकरपहकरेण-मक्षिकाणां वृन्द-वृन्देन 'अण्णिजमाणमग्गं' अन्वीयमानमार्गम् अनुगम्यमानमार्गम् ‘फुट्टहडाहडसीसं' स्फुटद्हडाहडशीर्ष-शिरोवेदनया व्यथितमस्तकं 'दंडिखंडवसणं' दण्डिखण्डवसनं दण्डी-कन्याधारी भिक्षुविशेषः तद्वत्खंडवस्त्रयुक्तं च, 'खंडमल्लखंडहत्थगयं' खण्ड मल्लखण्डहस्तगतम् अशनपानार्थ शरावखण्डद्वययुक्तहस्तं 'गिहे२' गृहे गृहे प्रतिगृहं 'देहवलियाए देहवलिकया-देहनिर्वाहार्थ वलिका आहारग्रहणं देहबलिका भिक्षावृत्तिः, तया 'वित्ति' वृत्तिम् आजीविका कप्पेमाणं' कल्पयन्तं कुर्वन्तं 'पासई' पश्यति । 'तयाणंतरं तदनन्तरं 'भगवं गोयमे' भगवान् गौतमः 'उच्चणीय रहा था। 'कट्ठाइं कलुणाई वीसराई कूयमाणं' जो इस प्रकार के कष्टकारी दुःखद एवं करुणाजनक अव्यक्त शब्दों को बोल रहा था कि जिन्हें सुनकर हर एक व्यक्ति के मन में दया आती थी। 'मच्छियाचडगरपहगरेण अपिणज्जमाणमग्गं' मक्खियों का झुण्ड का झुण्ड जिसके चारों
ओर भनभन करता हुआ पीछे२ चलता था । 'फुट्टहडाहडसीसं' भयंकर शिरकी पीडा से जिस का मानौ माथा फूटा जा रहा था, 'दंडिखंडवसणं' कन्याधारी भिक्षुकी तरह जो फटे हुए टाट के टुकडे
ओढे हुए था । 'खंडमल्लखंडहत्थगयं' खाने और पानी पीने के लिये जिसने अपने हाथ में दो कपाल मिट्टीके वर्तन के टुकड़े ले रक्खे थे
और 'देहवलियाए वितिं कप्पेमाणं पासई' शरीर निर्वाह के लिये घर घर भीख माँगता था उसको गौतम स्वामीने देखा। हतो, 'कट्ठाई कलुणाई वीसराई कूयमाणं' या प्रमाणे रे ४८४३॥ २१२ अर्थात् કરૂણાજનક અવ્યકત શબ્દો બોલી રહ્યો હતો કે જેને સાંભળીને સૌ કોઈ માનવ વ્યકિતને घोताना मनमा तेना या आता ती, 'मच्छियाचडगरपहगरेणअण्णिज्जमाणमग्गं માખીઓના ટોળાં જેનાં શરીરની ચારેય બાજુ ભણ–ભણ કરતા તેની પાછળ ફરતા डता, 'फुट्टहडाइड सीसं' भाथानी लय ४२ पीडाथी रेनु माथु शटी तु तु, 'दंडिखंडवसणं अन्याधारी लिनुनी भा६४ सटेसा शना टु31 मादसा 'खंडमल्लखंडहत्यगयं मावा-पीना भाटेवणे पोताना हाथमा मे भाटीना वासना १ रामेसा ता. अने 'देहवलियाए वित्ति कप्पेमाणं पासइ' शरी२ निs માટે ઘેર-ઘેર ભીખ માગતું હતું. તેને ગૌતમ સ્વામીએ જોયે.