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विपाकश्रुते 'सीहासणंसी' सिंहासने 'णिवेसावेंति' निवेशयन्ति-उपवेशयन्ति । 'तयाणंतरं च णं' तदनन्तरं' च खलु 'पुरिसाणं मज्ज्ञगयं तं पुरिसं' पुरुषाणां मध्यगतं तं पुरुष 'बहुहि' बहुभिः अयकलमेहि अयाकलशैः लोहकलशैः 'तत्तेहिं तप्तैः 'समजोइभूएहि' समज्योतिर्भूतैः अग्निसदृशैः 'अप्पेगइया' अप्य के 'तंबभरिएहि' ताम्रभृतैः द्रवीभूतताम्रपूर्णैः 'अप्पेगइया' अप्येके 'तउयभरिएहिं ' त्रपुभृतैः= द्रवीभूत-जसद इति-प्रसिद्धधातुविशेषपूर्णैः 'अप्पेगइया' अप्येके 'सीसगभरिएहि' सीसकभृतः द्रवीभूतसीसकाख्यधातुविशेषपूर्णैः 'कलकलभरिएहि' कलकलभृतः= अतितप्तत्वात्कलकलशब्दायमानजलभृतैः 'अप्पेगइया' अप्येके 'खारतेल्लभरिएहिं' क्षारतैलभृतैः क्षारचूर्णमिश्र तैलपरिपूर्णैः 'महया महया' महना महता 'रायाभिसेसंतप्त 'सीहासणंसि' सिंहासन के ऊपर, जो 'समजोइयंसि' अग्नि के समान लाल चोळ हो रहा है, 'णिवेसावेति' बैठा दिया। और 'तयाणंतरं च णं' बैठा चुकने के पश्चात् 'पुरिसाणं मज्झगयं तं पुरिसं' पुरुषों के मध्यगत उस पुरुष का 'अप्पेगइया' कितनेक पुरुष 'तत्तेहि' संतप्त अतएव 'समजोइभूएहिं अग्नि जैसे लाल 'बहुहिं अयकलसेहिं' अनेक लोह निर्मित घडों से कि जिनमें 'तंब भरिएहि पिघला हुआ तांबा भरा हुआ है, 'अप्पेगइया' कितनेक पुरुष ऐसे घडों से कि जिन म 'तउयभरिएहि' पिघला हुआ जसद भरा हुआ है, 'अप्पेगइया' कितनेक पुरुष ऐसे घडों से कि जिन में 'सीसगभरिएहि पिघला हुआ सीसा भरा हुआ है, 'अप्पेगइया' कितनेक पुरुष ऐसे घडों से कि जिन में 'कलकलभरिएहि' कलकल शब्द करता हुआ गर्म गर्म पानी भरा हुआ है, कितनेक पुरुष ऐसे घडों से कि जिन में 'खारतेल्लभरिएहि क्षारतेल भरा हुआ है, मिसनना 6५२२ 'समजोइयंसि' मतिना समान सय ७२स तुं. 'णिवेसावेति तना ५२ मेसाडी धेमने ' तयाणंतरं च णं । मेसाया पछी प्ररिसाणं मझगयं तं पुरिसं' पुरुषाना मध्यात ते पुरुषना ५२ ते सो 'अप्पेगइया' 2613 पुरुष 'तत्तेहिं तपावेत. अर्थात् 'समजोइभूएहिं' मनिया al 'बहुहिं अयकलसेहिं ' मेवा भने निर्मित माथा रेभ'तंत्र भरिएहि' वागणे तां मयु छ, 'अप्पेगइया' पुरुष मेवा घडाथी : रेभा 'तउयभरिएहि पाजावयु सित म छ, 'अप्पेगइया' 21 पुरुष सेवा घडा।
प रभा 'सीसगभरिएहि' सीसान। २२ सरसो छ, 'अप्पेगइया' Beatsyष वाघमारेभा 'कलकलभरिएहि' ४-४८ श६ ४२ता गरम पाए! २i 2, 2 पुरुष सेवा पाथीभा 'खारतेल्लभरिएहि क्षार तर सरेस