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________________ ४७४ विपाकश्रुते खलु उदयनो राजा 'पहाए' स्नातः कृतस्नानः 'जावविभूसिए' यावद्विभूषितः= यावत्सर्वालङ्कारविभूषितः 'जेणेव पउमावई देवी' यत्रैव पद्मावती देवी यस्मिनन्तःपुरे पद्मावती देवी तिष्ठति 'तेणेव' तत्रैव तत्पाचे 'उवागच्छई' उपागच्छति 'तए णं से उदयणे राया' ततः खलु स उदयनो राजा 'वहस्सइदत्तं पुरोहियं पउमावइए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुजमाणं पासइ पासित्ता' बृहस्पतिदत्तं पुरोहितं पद्मावत्या देव्या साधं उदारान् भोगभोगान् भुञ्जानं पश्यति, दृष्ट्वा 'आसुरुत्ते' आशुरुष्टः शीघ्रं कोपाविष्टः 'तिवलियं त्रिवलिकां-त्रिवलियुक्तां 'भिउर्डि' भृकुटि 'णिलाडे' ललाटे साहटु' संहृत्य-उन्नीय 'वहस्सइदत्तं पुरोहियं' बृहस्पतिदत्तं पुरोहितं 'पुरिसेहिं ' पुरुषैः राजपुरुषैः 'गिण्डावेई' ग्राहयति, 'गिहावित्ता' ग्राहयित्वा 'जाव' यावत् 'एएणं विहासाथ विलास कर रहे थे 'इमं च णं' इसी अवसर पर 'उदयणे राया' उदयन राजा 'पहाए जाव विभूसिए' नहा धोकर एवं राजसी ठाट-बाट से सुसज्जित हो कर 'जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छइ' जहां वह पद्मावती देवी थी वहां आये 'तए णं से उदयणे राया वहस्सइदत्तं पुरोहियं पंउमावईए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाइं भुजमाणं पासइ आते ही उदयन राजा ने वृहस्पतिदत्त पुरोहित को पद्मावती के साथ उदार भोगभोगों को भोगते हुए देखा । 'पासित्ता आसुरुत्ते तिवलियं भिंउडि णिलाडे साहटु वहस्मइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहि गिहावेई देखते ही वह कुपित हो गया। क्रोध के आवेश से उसके मस्तक पर त्रिवलियुक्त भृकुटि तन गई। उसने शीघ्र ही अपने नौकरों द्वारा वृहस्पतिदत्त पुरोहित को पकडवा लिया । 'गिहावित्ता जाव एएण विहाणेणं वज्ज आणवेइ' पकडवा कर ४॥ २यो हता, ते अभय ५२ 'उदयणे राया' अध्यन २ ‘ण्डाए जाब विभूसिए' नाही-धोने सवैभव प्रभाग 8 8-माथी तयार थधन ' जेणेव पउमावई देवी तेणेव उवागच्छई ज्यान मावती देवी si त्या भाव्या 'तए णं से उदयणे राया वहस्मइदत्तं पुरोहियं पउमावईए देवीए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुजमाणं पासई' मावत न्यन पृ५२५मित्त शक्तिने पद्मावती देवीनी साथै हार मागोन सोत ने पासित्ता आमुरुत्ते तिवलियं भिउडि णिलाडे साहट्ट वहस्सइदत्तं पुरोहियं पुरिसेहिं गिण्हावेड' लगानी साथै तपायमान यह ગ, દે ધના આવેશમાં તેના માથા પર પાલમાં ત્રણ વકિલ રેખા સાથે નેણનાં ભંવર ચઢી ગયાં, અને તુરત તેણે પોતાના નેક્રો દ્વારા બૃહસ્પતિદત્ત પુરોહિતને પકડાવી લીધે. 'गिहावित्ता जाव एएणं विहाणेणं वज्झं आणवेइ' ५४ी सतेने तना
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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