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________________ ४६० . विपाकश्रुते ततः खलु स महेश्वरदत्तः पुरोहितः 'जियसत्तुस्स रण्णो' जितशत्रो राज्ञः 'रज्जवलविवद्धणट्टयाए' राज्यबलविवर्धनार्थतायै राज्यवलद्धयर्थम्, अत्र स्वार्थे तल प्रत्ययः ‘कल्लाकल्लिं.' प्रतिदिनं 'एगमेगं माहणदारगं' एकैकं ब्राह्मणदारकम्, 'एगमेगं खत्तियदारगं' एकै क्षत्रियदारकम् , ' एगमेगं वइस्सदारगं' एकै वैश्यदारकम् , “एगमेगं सुदारगं' एकैकं शूद्रदारकम् ‘गिण्हावेइ' ग्राहयति गिहावित्ता' ग्राहयित्वा तेषां 'जीवंतयाणं चेव' जीवतामेव 'हियउडए' हृदयपुटकान् ‘गिण्हावेइ' ग्राहयति, "गिहावित्ता' ग्राहयित्वा "जियसत्तुस्स रण्णो' जितशत्रो राझः 'संतिहोम' 'शान्तिहोम-शान्त्यर्थ हवनं 'करेई' करोति । 'तए णं से' इत्यादि । 'तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए' ततः खलु सः महेश्वरदत्तः पुरोहितः 'अट्ठमीचउद्दसीसु' अष्टमीचतुर्दश्योः 'दुवे दुवे' द्वौ द्वौ माहण-खतिय-वइस्स-सुइदारए' ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शुद्रदारको-एककस्य महेश्वरदत्त पुरोहित 'जियसत्तुस्स रण्णो जितशत्रु राजा के 'रज्जबलविवद्धणट्ठयाए' राज्यबल की विशेष वृद्धि के लिये 'कल्लाकल्लिं' प्रतिदिन "एगमेगं माहणदारगं' एक एक ब्रह्मण के बालक को 'एगमेगं खत्तियदारगं' एक एक क्षत्रिय के बालक को 'एगमेगं वइस्सदारगं' एक एक वैश्य के • बालक को 'एगमेगं सुइदारगं' एक एक शुद्र के बालक को 'गिहावेई' पकडवाता और 'गिलावित्ता' पकडवाकर 'तेसिं जीवंतगाणं वेव हियउडए गिण्हावेइ' जीवित उनके हृदयपुट-हृदय के मांसपिंड को निकलवा लेता था। 'गिहावित्ता' निकलवाकर फिर वह उससे 'जियसत्तुस्स रणो' जितशत्रु राजा की 'संतिहोम' शांति के निमित्त हवन करेइ करता था। 'तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए' फिर वह महेश्वरदत्त पुरोहित 'अट्ठमीचउदसीसु' अष्टमी एवं चतुर्दशी के दिन 'दुवे२ माहणखत्तियवइस्ससुद्ददारए' ग्दत्ते पुरोहिए' ते भवत्त पुरोहित 'जियसतुस्स रणो' तिशत्रु सतना 'रज्जवलविवद्धणद्वयाए' जना विशेष वृद्धि भाट 'कल्लाकल्लिं' प्रतिहिन 'एगमेगं माहणदारगं' से ब्राह्मनां माने 'एगमेगं' मे मे 'खत्तियदारग' क्षत्रियन पाने 'एगमेगं' मे से 'वइस्सदारंग' वैश्यना ने 'एगमेगं सुदारगं' मे... शुना पाने 'गिण्हावेइ ' ५४ापतो तो 'गिहावित्ता' ५वीन 'तेसि जीवंतगाणं चेव हियउडए गिहावेइ ' पित नायट यनां मांसपिउने दी बेते हतो, 'गिहावित्ता' हीने पछी ते तेनाथी 'जियसत्तुस्स रण्णा'तिशत्रु लनी 'संतिहोम' शांति निमित्त वन करे। ३२ते तो 'तए णं से महेसरदत्ते पुरोहिए' भने २१ ते पछी ते भावहत्त डित 'अट्टमीचउद्दसीसु' म भने योशना हिवसे 'दुवे२ माहणखत्तियवइ HEALTH
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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