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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ४, शकटवर्णनम् करेगा । सुधर्मास्वामी जंबूस्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू ! इस प्रकार इस चतुर्थ अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर स्वामीने यह भाव प्रकट किया है यही मैने तुझे कहा है ॥ सू० १४ ॥
॥ इति श्री विपाकश्रुतकी विपाकचन्द्रिका टीका में दुःखविपाक नामक प्रथमश्रुतस्कन्धमें 'शकट' नामक चतुर्थ अध्ययन का हिन्दीभाषानुवाद सम्पूर्ण ॥१॥४॥
પ્રાપ્ત કરશે. સુધર્મા સ્વામી જંબુસ્વામીને કહે છે કે હે જબૂ! આ પ્રમાણે આ ચોથા અધ્યયનના શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ જે ભાવ પ્રકટ કર્યા છે, તે साल में तभने छे. (सू० १४)
धति श्री विश्रत सूत्रनी 'विपाकचन्द्रिका' Aswi :विधा नामना प्रथम श्रतधमा 'शकट' नामना याथा मध्ययननी
ગુજરાતી ભાષાનુવાદ સંપૂર્ણ ૧ ૫ ૪ છે