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________________ ४३६ विपाकश्रुते उपागत्य शकटं दारकं सुदर्शनया सार्धम् 'उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणं पास उदारान् भोगभोगान् भुञ्जानं पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'आसुरुते' आशुरुष्टः= शीघ्रक्रुद्धः 'जाव' यावत् 'मिसमिसेमाणे' प्रिसमिसायमानः = क्रोधेन जाज्वल्यमानः, 'तिवलियं' त्रिवलिकां 'भिउडिं' भ्रुकुटिं 'णिडाले' ललाटे 'साइड' संहत्य= संकोच्य, 'सगडं दारयं पुरिसेहिं' शकटं दारकं पुरुषः 'गिव्हावेइ' ग्राहयति, 'गिण्डावित्ता' ग्राहयित्वा 'अद्वि - जावमहियगत्तं' अत्र 'जाव' - शब्दादेवं योजना - 'अजाणुको परप्पहारेण संभग्गमहियगत्तं' अस्थिमुष्टिजानुकूर्परप्रहारेण संभग्नमथितगात्रं, 'कारेइ' कारयति 'कारिता' कारयित्वा 'अवउडगवंधणं' अवकोटकबन्धनं - अवकोट केन = कुकाटिकाया ग्रीवापश्चाद्भागतः अधोनयनेन बन्धनं यस्य स तथा तम्, गलाघोभागतः पृष्ठदेशमानीतया रज्ज्वा पृष्ठदेशे वद्धं हस्तद्वयं यस्य तमित्यर्थः, 'कारे' कारयति, 'कारिता जेणेव मह च्चंदे राया तेणेव उवागच्छन्' कारयित्वा यत्रैव महाचन्द्रो राजा, तत्रैवोपा 'भोगभोगाई भुंजमाणं पासई' शकट दारक को सुदर्शना वेश्या के साथ उदार भोग भोगों को भोगते हुए देखा । 'पासिता ' देखते ही वह एकदम 'आसुरुते जात्र मिसिमिसेमाणे' उस पर लाल पीला होगया और मिस मिसाकर उसने 'तिवलियं ' त्रिवली को और 'मिकडिं' भ्रुकुटी को 'पिडाले ' अपने मस्तक पर 'साहट्ट' चढाकर 'सगडं दारयं उस शकट दारक को 'पुरिसेहिं गिलावे' अपने सेवकों द्वारा पकड़वा लिया, 'fiafvar' और पकड़वाकर 'अट्ठि जान महियं कारेइ' उसने उसको अस्थि, सुष्टि, जानु, कूर्पर - कोनी के प्रहारों से खूब पिटवाया । 'कारिता अवउडगबंधणं कारेइ' जब उस पर खूब मार पड़ चुकी तय बाद में फिर उसने इसके दोनों हाथ गर्दन में फंदा डलवाकर उस को पीठ के पीछे बंधवादिये । 'कारिता' बंधवाकर 'जेणेव महच्चंदे राया तेणेव उवागच्छ' रिसाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणं पास શકટ દાને સુદર્શના वेश्यानी साधे उहार असलोगोने लोगवतो लेयो 'पासित्ता' लेहने तुरंत ‘आनुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे' तेना पर बाल चीनी ! ोधायमान) २४ 'तिवलिये ' श्रीपतीने अने 'भिउडिं' अमरने 'णिडाले' ससारसां थढावी 'सगडं दारयं ते शस्ट हारने 'पुरिसेहिं गिण्डावे' पोताना नोकरी द्वारा पकडावी सीधे 'गिव्हावित्ता' पडावी ने 'अट्ठि जात्र महियं कारेइ' ते ते शत्रुटने अस्थि, भुही, ढींचा २-श्रेणी वगेरेना प्रहारो उरीने पूर्ण भार भार्यो 'कारिता अवउडगबंधणं कारेड' ल्यारे तेना पर यू भार पडी युञ्ज्यो ते पछी, तेथे ते शरना में हाथ, गरहन पाछन रमावीने तेनी थीहनी पाछण अंधावी हीधा 'कारिता ' 'धावीन 1 1.
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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