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विपाकश्रुते सार्थवाही सुभद्रं सार्थवाहमेवमवादीत्-एवं खलु' इत्यादि-एवं खलु देवाणुप्पिया !' एवं खलु हे देवानुप्रिय ! 'मम तिण्हं मासाणं जाव' मम त्रिषु मासेषु बहुप्रतिपूर्णषु बहूनां गोरूपाणां पशूनां जलचरादिपक्षिणां च मांसः सह मदिराणासुपभोगरूपो दोहदः प्रादुभूतस्तस्मिन्नपूरिते अपहतमन संकल्पा सती 'झियामि' ध्यायामि आध्यानं करोमि । 'तए णं से सुभद्दे सत्थवाहे भदाए मारियाए एयम सोचा निसम्म' ततः खलु स सुभद्रः सार्थवाहः भद्राया भार्याया अन्तिके एतमथै श्रुत्वा निशम्य पर्यालोच्य 'भईभारियं एवं वयासी' भद्रां भार्यामेवमवादीत्-'एवं खलु' इत्यादि-एवं खलु देवाणुप्पिया' एवं खलु= निश्चयेन हे देवावप्रिये ! 'तुह गभसि अम्हाणं पूबकयपात्रप्पभावेणं कोइ अहम्मिए' तत्र गर्भ आवयोः पूर्वकृतपापप्रभावेणं कोऽपिकश्चित् अधार्मिका धर्मशून्यः 'जाव पूछने पर वह भद्रा सार्थवाही कहने लगी- 'एवं खलु देवाणुप्पिया! मम तिण्डं मासाणं जाव झियामि' हे देवानुप्रिय । मेरे गर्भ के तीन माह पूरे होने पर इस प्रकार का दोहला उत्पन्न हुआ है कि-में नगर के बहतसे गोरूप पशुओं के और जलचरादि पक्षियों के तले भूजे सोले किये हुए मांस के साथ मध्वादि पांच प्रकार की मदिरा का आस्वादन करूँ, बार बार स्वाद लूँ, उनका परिभोग करूँ और अन्यस्त्रीयों को भी दूं, इस प्रकार के दोहले के पूरे न होने से मैं 'झियामि' आर्तध्यान कर रही हूँ। 'तए णं से सुभद्दे सत्थवाहे फिर वह सुभद्र सार्थवाह भदाए भारियाए एयमह सोचा निसम्म भई भारियं एवं वयासी' भद्रा भार्या के समीप इस बात को सुनकर और हृदय में धारणकर अद्रा भार्यां को इस प्रकार बोले 'एवं खलु देवाणुप्पिया' हे देवानुप्रिये ! 'तुह गभंसि' तेरे गर्भ में 'अम्हाणं पुच्चायपावप्पहावेणं' पुछपाथी ते मी सार्थवाही 34 सा-' एवं खलु देवाणुपिया! मम तिण्डं मासाणं जाव झियामि' वानुप्रिय! भा२१ जर्मनां त्रय मास पूरी यता भने આ પ્રમાણે દેહલો–મનોરથ ઉત્પન્ન થયે છે કે– હું નગરનાં ઘણું જ ગાય–રૂપ પશુઓના તથા જલચરાદિ પક્ષિઓનાં તળેલા ભુંજેલા અને શૂલ પર રાખીને પકાવેલા માંસની સાથે મધુઆદિ પાંચ પ્રકારની મદિરાનું સેવન કરું, વારંવાર સ્વાદ લઉ તેને પરિગ કરું અને બીજી સ્ત્રીઓને પણ તે આપું, આ પ્રકારને દેહલે પૂરે થયે नहितेथी 'झियामि' मात्तध्यान शरडी छु'तए णं से सुभदे सत्थवाहे' पछी ते सुखद सार्थावाड 'भदाए भारियाए अंतिए एयमई सोचा निसम्म भई भारियं एवं नयासी' म मानी पासेथी ते पात समजान ध्यभा धारा ४शन
मा पत्नीने मा प्रमाणे वा ताभ्यो-"एवं खलु देवाणुप्यिा! देवानुप्रिये < 'तुह गभंसि' ता! भा 'अम्हाणं पुचकयपावप्यहावेण 'गमा पूर्णयित