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• विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० ४, शकटस्यजन्मवर्णनम् दोहदे 'अविणिज्जमा सि' अविनीते = अपूरिते सति 'सुका' शुष्का = चिन्तया शुष्कशरीरा 'भुक्खा' बुभुक्षिता दोहदपूर्त्यभावादिति भावः, 'जाव झियाइ ' यावत् ध्यायति=यावत् अपहतमनःसंकल्पा= अविनष्टमनोरथा सती ध्यायति= आर्त्तध्यानं करोति । 'तए णं से सुभद्दे सत्थवाहे ' ततः खलु एकदा स सुभद्रः सार्थवाहः 'भदं भारियं ओहय जाव पासइ एवं वयासी' भद्रां भार्या अपहतयावत् पश्यति = अवहतमनः संकल्पामार्त्तध्यानं कुर्वतीं पश्यति, एवमवादीच्च'किं णं' इत्यादि - 'किं णं तुमं देवाणुप्पिया !" किं खलु त्वं हे देवानुप्रिये ! 'ओहय जाव झियासि ' अपहतमनः संकल्पा सती आर्त्तध्यानं करोषि ? | 'त णं सा भद्दा सत्यवाही सुभद्दं सत्थवाहं एवं वयासी' ततः खलु सा भद्रा और दूसरी स्त्रीयों को भी बाँहूं, इस प्रकार अपने दोहले को 'विणिज्जामि' पूर्ण करूँ तो अच्छा हो 'तिकड' ऐसा विचार कर 'तंसि दोहलसि अविणिज्ज माणंसि' उस दोहले के पूर्ण न होने से वह भद्रा 'सुक्का भुक्खा जाव' सूखने लगी, चिन्ता के कारण अरुचि होने से वह भूखी रहने लगी, शरीर उसका रोगग्रस्त जैसा मालूम होने लगा और मुंह पीला पड गया तथा निस्तेज - फीका - हो गया. यह रात-दिन नीचे मुंह किये हुए आर्त्तध्यान करती रहती थी । 'त ं से मुद्दे सत्यवा' एक समय वह सुभद्र सार्थवाह 'भदं भारिय ओहय जाव पासई' भद्रा भार्या को पूर्वोक्त प्रकार से आर्त्तिध्यान करती हुई देखा और 'एवं वयासी' कहा कि- किं णं तुमं देवाणुप्पिया ओहय जाव झियासि' हे देवानुप्रिये ! तुम ऐसे आर्त्तध्यान क्यों करती हो ? 'तणं सा भदा सत्थवाही सुभदं सत्यवाहं एवं वयासी' सुभद्र के ऐसे
કરૂં, પરિભેગ કરૂં, અને બીજી સ્ત્રીએને વહેંચુ, આ પ્રમાણે મારા દાહલા (મનેरथ) ने 'विणिज्जामि' ४३ तो सा३' ' तिकडे ' मा प्रमाणे विचार उरीने 'तंसि दोहलसि अत्रिणिज्ज माणंसि' ते होता--मनोरथ पूर्ण नहि थवाथी ते भद्रा 'सुका भुक्खा जाव' सुभवा लागी शिन्ताना अरोरा पर अस्थी थवाथी તે ભૂખી રહેવા લાગી, તેનું શરીર રોગગ્રસ્ત જેવું દેખાવા લાગ્યું અને મુખ પીળું પડી ગયુ તેમજ નિસ્તેજ ી થઈ ગયું, અને રાત્રી-દિવસ નીચુ સુખ રાખીને आत्तध्यान ४२ती हुती, ' तए णं से सुभद्दे सत्थवाहे ' s समय ते सुभद्र सार्थवाह 'भदं भारियं ओहय जाव पास' भद्रा भार्याने पूर्वोऽत - आागज भागाच्या प्रमाणे आर्तध्यान कुश्ती लेने 'एवं वयासी' अधु' - 'किं णं तुमं देवाणुपिया ओहय जाव ज्ञियासि' हे हेवानुप्रिय ! तभे या प्रकारे आर्त्तध्यान शा भाटे उरो छो ? ' तए णं सा भदा सत्यवाही सुभदं सत्थवाहं एवं वयासी ' સુભદ્રના
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