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________________ ४०४ विपाकश्रुते टीका 'तत्य णं' इत्यादि । 'तत्य गं सोहंजणीए णयरीए तत्र खलु शोभाअन्यां नगा 'मुभद्दे णाम' मुभद्रो नाममुभद्रनामकः 'सत्यवाई सार्थवादः होत्या आसीन् । स कीदृशः ? इत्याह-'अड्डे जाव अपरिभूए' इति । आढया धनवान् यावद् अपरिभूतः । 'तस्स गं सुभहस्स सत्यवाहस तस्य खलु सुभद्रस्य सार्थवाहस्य 'भदाणाम भद्रानामभद्रानाम्नी 'भारिया भार्या, 'होत्था' आसीत् । सा कशी?-त्याह-मुञ्जमालपाणिपाया मुकुमारपाणि पादा-कोमलकरचरणा, तथा-'अहीण-'अहीणपडिपुष्णपंचिंदियसरीरा' अहीनपरिपूर्णपञ्चेन्द्रियशरीरा-हीनानि अन्यूनानि स्वरूपतः, परिपूर्णानि लक्षणतः, पञ्चापीन्द्रियाणि यम्मिंस्तन्, तथाविधं शरीरं यस्याः सा तया । 'तस्स णं सुभइस्स सत्यवाउस्स तस्य खलु नुभद्रस्य सार्यवाहस्य 'पुत्तेः पुत्रः, भवाए भारियाए भद्राभार्यायाः 'अत्तए आत्मजः 'सगडे णामं दारए' शकटो नाम-शकटनामकः, दारकः होत्या' आसीन् । स कीदृशः ? इत्याह-'अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे इति, अहीनपरिपूर्णपञ्चेन्द्रियशरीरः ॥ नृ० ३ ॥ 'तत्य णं इत्यादि । 'तत्य णं सोहंजणीए णयरीए' उस सोभालनी नगरी में 'सुहद्दे णाम सत्यवाहे होत्या' सुभद्र नामका एक सार्थवाह रहता था। 'अड्डेजार अपरिभूर यह जन धन आदि से परिपूर्ण था। तस्स णं मुभहस्स सत्यवाहस्स भहाणामं भारिया होत्या इस सुभद्र की भार्या का नाम भद्रा था। 'मुकुमालपाणिपाया अहीण' इसके कर और चरण दोनों सुक्रमार थे। शरीर भी पांचों इन्द्रियों के यथावस्थित प्रमाण से परिपूर्ण था। 'तस्स णं सुभदास सत्यवाहस्म पुत्ते भवाए भाग्यिाए अत्तए उस सुभद्र सार्थवाह का एक पुत्र था जो इसकी भद्रा पत्नी की कुक्षि से उत्पन्न हुआ था। 'सगडे पामं तत्य णं त्य!! तत्य णं सोहंजणीए णयरीए - eirrl नगदी 'सुद्दे णामसत्यवाहे होत्या' सुभ कामना से मापाड पनडेता ता 'अड्डे जावअपरिभूए' ते भाइलो भने नायिी परिषद ता. 'तस्स णं मुभइत्स सत्यवाहन महापामं भारिया होत्या' ने सुभद्रनी पत्नी नाममात 'मुकुमाल' 'अहीणं तनः ९५ मने पर पन्ने मुभा असता, शरीर पर पाय द्रियाना या-24 मारथी पनि तु 'तस्स गं मुभइम्स सत्यवाहस्त पुत्ते भहाए भारियार अनए त सुना सार्थवाऽने से पुत्र तो ते तेनी मा पत्नीन! स्थी उत्पन्न यो ने 'सगडे णाम दारए होत्या' ने नाम ५८
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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