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________________ ३७२ - विपाश्रुते 'गणियावरनाइजकलियं गणिज्ञावरनाटीयलित गाविसौनाकानेश्व कलितो यः स तया, तम् . 'अणेगतालायनशुचरियं अनेकतालावरानुचरितम्अनेकैः, तालावर प्रेमविशः ताायकरित्यर्थः, अनुचरितम् आनेपितनित्यर्थः, पमुड्यपीलियाभिरानं प्रनितमीडिताभिरामम-अमुदितः यहः प्रीडित पक्रीडवाभिराम मनोहरम् महरि नहाई-भतां योग्यम् , 'इस रतं जमरानंदनावरात्रव्यापकम् 'पनाचं प्रमानम्-ध्र्यम्-उल्लवम् : "उग्योसाव उसोश्यति. स्वपुत्पैदोषणा कार्यात्ययः । 'उपयोगचित्ता कोइंडियपुरित सहा उद्योपपिन्वा, कोहन्दिकपुरुषान् शशनि-माध्यति, मजाविता 'गानियावरनाइजलिय वेश्याओं एवं नाटक करने वालों के नाच, गान एवं अभिनय, इस अवसर पर देखने को मिलेंगे । ममतालायराणुचत्यिं तालविया में निपुण जनों ज्ञा यहां अच्छा जमघट रहेगा. 'यमुझ्यपजील्यिाभिरानं अनेक प्रकार के खेल और तमाशे यहां जनता को दिखलाये जायेंगे, जनता के प्रत्येक आवश्यकीय कार्यों की एवं उसकी सुखसुविधा की यहां सुन्दर ले सुन्दर व्यवस्था की जावेगी. 'महरिह इसे जहां तक हो सकेगा-दर्शनीय एवं अनुकरणीय बनाने की हर तरह से चेष्टा की जायगी! इनानं यमायं उन्योलाई वह उत्सव दश दिन तक होगा इस प्रकार राजाने अपने जनों द्वारा उत्सव की घोषणा कराई । 'उग्यासाविना इस घोषणा के हो चुकने पर फिर राजा ने 'कोडवियपुरिने महार अपने आज्ञाकारी पुरुषों को अपने निकट बुलवाया सदारिता और बुला कर एवं दुनः पड़ या मेन को गणियावरनाइजकलिय: ३६५ ने य, वन को अभिनय २५: उप २२. ना. 'अणेगतागायतणुचरिय विमा शा भावोनी बानी ने मदर 40. 'पमुइयपीलियाभिरामं भने : ने : महा भने म मधे मोती बनाम मानी की मने ले म मटेही वासना नदी ए काम ०१५. 'महि नेने घनो त्यधीनी न रुनु भयका नाटे । नः प्रयः ॐनां भी 'इसरचं पोयं उपयोसावे हद कधी रे भरे वाले थे.. माइतेः २ः ती - उवामाविचा' : प्रनार या ही सीधी केविरपुरिने महाड़ टन सामी नारः पुलोने जा या महावित्ता यादीने एवं व्यासी प्रम -
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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