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________________ ३६४ विपाकश्रुते स दण्डोऽभग्नसेनचोरसेनापतिना इतमथित-यावत्-प्रतिषेधितः सन् 'अत्यामे' अस्थामा अस्थिरः, 'अवले' अवल:-शारीरिकवलहीतः, 'अवीरिए' अवीर्यःमनोवलरहितः 'अपुरिसकारपरक्कमे' अपुरुषकापराक्रमः उद्योगशक्तिरहितः 'अधारणिज'- अधारणीयम्, अधारणीयं धारयितुमशक्यं चोरवलम् अस्माभिः' इतिकटु' इति कृत्वा-इति-विदित्वा, स दण्डः-'जेणेव पुस्मिताले णयरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागच्छई' यत्रैव पुरिमतालं नगरं यत्रैव महावलो राजा तत्रैवोपागच्छति, 'उवागच्छित्ता करयल जाव' उपागत्य करतलपरिगृहीतं शिरआवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा ‘एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अआदीत्'एवं खलु सामी !' एवं खलु हे स्वामिन् ! 'अभग्गसेणे चोरसेणावई' अभनसेनश्चोरसेनापतिः 'विसमदुग्गगहणहिए' विपमदुर्गगहनस्थितः विषमम्-उच्चमथित आदि दशासंपन्न हुआ 'अत्थामे अवले अवीरिए अपुरिसकारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु' अस्थिर, बलहीन, मानसिकशक्तिरहित एवं उद्योगशक्तिविहीन बन कर 'इस चोर सैन्य का हम साम्हना नहीं कर सकते यह दुष्प्रधर्ष (जिसका दान करना मुश्किल हो ऐसा) है। ऐसा विचार कर 'जेणेव पुरिमताले णयरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागच्छई' वह पुरिमताल नगर की ओर महावल राजा के निकट वापिस वहाँ से लौट आया । 'उवागच्छित्ता' आकर 'करयल जात्र एवं वयासी' उसने दोनों हाथ जोडकर राजा का अभिवादन किया और इस प्रकार फिर वह बोला-'एवं खलु सामी' हे स्वामिन् । मेरे लोट आने का कारण यह है कि 'अभग्गसेणे चोरसेणावई' वह अभग्नसेन चोरसेनापति 'विसमदुग्गगहणहिए' विषम और दुर्गम पसोपामेल) माहित ने 'अत्थामे अवले अवीरिए अपरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जिमिति कटु' २५२, asीन, मानसिशतित सने उद्योगશકિનરહિત બનીને “આ ચે ન્યન અમે સામનો કરી શકતા નથી. આ દુબધર્ષ (रेन मन भुश्शीथी २.५ मे) छ' में प्रभारी पिया२ शने 'जेणेव पुरिमताले णयरे जेणेव महब्बले राया तेणेव उवागच्छइ ' ते पुस्मिताल नानी त२६ भ नी पासे त्यांथी पाछ। १२माध्या ' उवाच्छित्ता' मावाने 'करयल जाव एवं वयासी' तेणे गन्ने हाथ नहीन रानने वहन यु भने पछी मा प्रमाणे माझ्या-' एवं खलु सामी' वाभिन्! भाई पाछु । भावपार्नु २५ मे छे - अभग्गसेणे चोरसेणावई' ते ममग्नसेन यारसनापति 'विसमदुग्गगहणट्ठिए' विषम भने हुभ मापननी मदर छुपाईने भेट
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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