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विपाकश्रुते लीकृतमित्यर्थः। कास्ता अम्बाः ? इत्याकाङ्क्षायामाह-'जाओ गं' इत्यादि । 'जाओ णं' या खलु अस्वाः , 'वहूणं' बहूनांवहुविधानां, 'णयरगोरूवाण नगरगोरूपाणां 'सणाहाण य' सनाथानां च 'जाव वसभाण य' यावद् वृषभाणाम् , अत्र यावच्छन्देन-अनाथानां नगरगवीनां बलीवर्दानां, नगरपड्डिकानां बालमहिपीणाम् , नगरमहिषीणां, नगरमहिषाणां, नगरपभाणाम् , इति बोध्यम् , 'ऊहेहि य' ऊधोभिश्च-गवादीनां स्तनोपरिभागैः, 'थणेहि य स्तनैश्च 'वसणेहि य' वृषणैः अण्डकोशश्व, 'छिप्पाहि य' पुच्छश्च, 'छिप्पा' इति देशीयः शब्दः पुच्छवाचकः, 'ककुएहि य' ककुदैश्च 'बहेहि य' वहः स्कन्धैश्च, 'कण्णेहि य' कर्णैश्च, अक्खीहि य' अक्षिभिश्च, 'णासाहि य' नासाभिश्च, 'जिम्माहि य' जिहाभिश्च 'ओडेहि य' ओष्ठैश्च, कंवलेहि य' कम्बलैः मास्नाभिश्च, 'सोल्लेहि य' पक्वैः-संदंशनेन वहिपक्वैश्व, 'तलिएहि य' तलितैः-तैले घृते वा पक्वैश्च, 'भजिएहि य' भर्जितैश्च, 'परिसुक्केहि य' परिशुष्कैश्च, 'लावणिएहि य' फल अच्छी तरह पाया है, 'जाओ णं वहूर्ण णयरगोख्वाणं सणाहाण य जाव वसभाण य' जो नगरनिवासी अनेक सनाय एवं अनाथ गाय आदि से लेकर सांड पर्यन्त जानवरों के 'ऊहेहि य' स्तन के उपर के भाग 'थणेहि य' स्तन, 'बसणेहि य' अंडकोश, 'छिप्पाहि य' पुच्छ, 'ककुएहि य' ककुद 'वहेहि य' स्कंध, कण्णेहिय कान 'अक्खीहिय'
आँख, 'णासाहि य' नाक, 'जिन्भाहि य' जिह्वा, 'ओढेहि य' ओष्ठ और 'कंवलेहि य' सास्ना (गले के नीचे लटकती हुई चमडी) ये सभी काट-काट कर लाये हुए हों, और फिर से 'सोल्लेहि य' संडासी द्वारा अग्नि में पके हए हों, 'तलिएहि य' तैल अथवा घृत में तले गये हो, ‘भजिएहि य' भुजे गये हों, ‘परिसुक्केहि य' सुकाये हुए हों,
वननु ॥ सारी शते प्राप्त युछ 'जाओ णं वहणं णयरगोरुवाणं सणाहाण य जाव वसभाण य. नगरमा रहनारी मने सनाथ ने मनाथ गाय माथी बने सांद पय-तन नपरेना ऊहेही यस्ता ५२ना भाग'थणेहिय' तन 'वसणेहि य ' म ' छिप्पाहि य ' 'छाया 'ककुएहि य' gal (सांढना धना पाना भाग भांसपिड) 'वहेहि य २४५ 'कण्णेहि य' छान ' अक्खीदि य, मांग णासाहि य , ना ' जिम्माहि य । म । ओहि य 16 भने ' कंबलेहि य । साना - नी नये टती यम से या पी-पीने सावता .य, अनेश सोल्लेहि य , सायसी द्वारा निमा ५४ाला हाय, ' तलिएहि य 'धी अथवा सभा तणेसा छाय, ' भज्जिएहि य । भुरेसा अय, परिसुक्केहिं य ' सुवेता खाय, .. मने