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________________ विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, मृगापुत्रवर्णनम् . दारगं रहस्सियगंसि. भूमिघरंसि रहस्सिएणं भलपाणेणं पडिजागरमाणीर विहराहि, तो णं तुम्हें पया थिश भविस्सइ । तए णं सा मियादेवी विजयस्त खत्तियस्त तहत्ति एयमई विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता तं दारगं रहल्सियंसि भूमिघसि रहस्सिएणं. भत्तपाणेणं पडिजागरमाणीर, विहरइ । एवं खलु गोयमा ! मियापुत्ते दारए पुरा पुराणाणं जाव पञ्चणुब्भवमाणे विहरइ ॥ सू० २० ॥ टीका . 'तए णं इत्यादि । 'तए णं सा मियादेवी तं दारगं' ततः खलु सा पृगादेवी तं दारक 'हुंडं' हुण्डम् अव्यवस्थिताङ्गाक्यवं-सर्वावयवप्रमाणविकलसंस्थानेन युक्तमित्यर्थः, 'अंधरूवं ' अन्धरूपं 'पासइ ' पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा 'भीया' भीता भययुक्ता भयजनकविकृताकारदर्शलात् 'तत्था' त्रस्ताबासमुपगता, "अयमस्माकं कीदृशमशुभं विधास्यती"ति-चिन्तनात्, 'उविग्गा' उद्विग्ना व्याकुला 'तए णं सा' इत्यादि। 'तए णं' बालक के जन्म होनेके पश्चात् 'सा मियादेवी' उस मृगादेवीने 'हुंडं' हुण्डक-खास आकार' से रहित एवं समस्त अवयवों के प्रमाण से शून्य संस्थानवाला, तथा 'अंघरूवं' अंघरूप 'तं दारगं' उस पुत्र को 'पास' देखा, 'पासित्ता' देखते ही यह इस विचार ले कि-"यह हमारा क्या अनिष्ट करेगा?' 'भीया, तत्था, उबिग्गा, संजायभया' अत्यंत डर गई एवं त्रस्त हुई, उद्विग्न-व्याकुल हुई, तथा भय से उसका शरीर कांपने लग गया। पश्चात् 'अम्मधाई' धाय माता को 'सदावेइ' बुलाया, 'सदाविता' 'तए णं सा.' त्या. 'तए णं' म थय। पछी 'सा मियादेवी' ते भृगवाये 'हुंडं' हु-मास मा४।२२हित मेसे तमाम अवयवोन प्रमाणुथी शून्य संस्थान पात, तथा 'अंधरुवं' मध३५ 'तं दारगं' ने 'पास' या'पासित्ता हेमतir “से पियारथी है २मा समा३ पनिष्ट ४२शे" 'भीया तत्था उधिग्गा संजायभया' ७०४ मय पाभी , मने पीडित थ, यात्रु ५० थ), तथा सय ५ तेनुं शरीर ४५वा सायु, पछी 'अम्मधाई' धाय माताने 'सद्दावे'
SR No.009356
Book TitleVipaksutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1959
Total Pages825
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size58 MB
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