________________
वि. टीका, श्रु० १, १० १, एकादिराष्ट्रकूटस्य वैधादिकृतोपचारः १४३ स्वचः प्रतनूकरणैश्वेत्यर्थः, 'सिरबत्थीहि य' शिरोवस्तिभिश्व-शिरसि चर्मकोशं दत्त्वा तत्र संस्कृततैलादिपूरणैश्चेत्यर्थः, 'तप्पणेहि य' तर्पणैश्च-स्निग्धद्रव्येण शरीरसंवाहनैश्च 'पुडपागेहि य' पुटपाकैश्च पाकविशेषनिष्पन्नौषधविशेषश्च, 'छल्लीहि य' छल्लीभिश्च निम्बादित्वग्भिश्च, 'वल्लीहि. य' वल्लीभिश्च-गुडूच्यादिलताभिश्च, 'मूलेहि य कंदेहि य पुप्फेहि य पत्तेहि य फलेहि य बीजेहि य' मूलैश्च, कन्दैश्च, पुष्पैश्च, पत्रैश्च, फलैश्च, बीजैश्च, 'सिलियाहि य' शिलिकाभिश्च, शिलिका-किराततिक्तः 'चिरायता' इति प्रसिद्ध ओषधिविशेषः, 'गुलियाहि य' गुलिकाभिश्च 'ओसहेहि य' औषधैश्च 'भेसज्जेहि य' भैषज्यैश्च-अनेकौषधिमिश्रितरूपैः, 'इच्छंति' इच्छन्ति 'तेसिं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायकं क्षुरा आदि से छीलने आदि द्वारा, 'सिरबत्थीहि य' शिरोबस्तिसिर में चर्मका कोस बांधकर दबासे निर्मित तैल के भरने द्वारा, 'तप्पणेहि य' तर्पण-स्निग्ध द्रव्यसे शारीरिक मालिश द्वारा 'पुडपागेहि य' पुटपाक-पाकविशेष से तैयार की गई ओषधियों द्वारा, 'छल्लीहि य" नीम वगैरह की भीतरकी छाल द्वारा, 'वल्लीहि य' गुडूची आदि लताओं द्वारा, 'मूलेहि य, कंदेहि य, पुप्फेहि य, पत्तेहि य, फलेहि य, वीएहि य, सिलियाहि य, गुलियाहि य, ओसहेहि य, भेसज्जेहि य' मूल, - कन्द, पुष्प, पत्र, फल, बीज, शिलिका-चिरायता, गुलिका, औषध -
और भैषज्यरूप अनेक ओषधियों से मिश्रित बा-विशेष द्वारा 'सिरवत्थीहि य' शिरामती-शिरमा सामान A नामी पाथी मनावे तेना ।, 'तप्पणेहि य त-सिन द्रव्यथा शारी२ि४ भातिय दास, "पुडपागेहि य' पुटपा४-पाविशेषयी तयार ४२सी भाषधिमा दा२१, 'छल्लीहि य' -सी31 वगैरेनी मत२७ वारा, 'वल्लीहि यं' गणो माह सतायो वारा, 'मृलेहि न्य, कंदेहि य, पुप्फेहि य, पत्तेहि य, फलेहि य, बीएहि य, सिलियाहि य, गुलियाहि य, ओसहेहि य, भेसज्जेहि य' भूख, ४-६, स, पत्र, ६१, ale, કરીએ,ગુલિકા, ઔષધ અને ભષજ્ય આદિ અનેક ઓષધિઓથી મિશ્રિત દવા વિશેષ દ્વારા