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विपाकचन्द्रिका टीका, श्रु० १, अ० १, एकादिं राष्ट्रकूटस्यान्यायवर्णनम् १२९ 'पासमाणे' पश्यन् 'भासमाणे' भाषमाणः, 'गिण्हमाणे' गृह्णन् , 'जाणमाणे' जानन्, अयमर्थः पश्यन् वदति न पश्यामीति, अपश्यन् वदति-पश्यामीति, तथा भाषमाणो वदति-नाहं ब्रवीमीति, अभाषमाणस्तु वदति-अहं ब्रवीमीति, तथा गृह्णन् वदति-न गृह्णामीति, अगृह्णन् भणति-गृह्णामीति, जानन् भणतिन जानामीति, अजानन् वदति-जानामीति । 'तए णं से एक्काई रहकूडे' ततः खलु स एकादी राष्ट्रकूटः 'एयकम्मे' एतत्कर्मा 'एयप्पहाणे' एतत्प्रधाना= एतनिष्ठः, 'एयविज्जे' 'एतद्विद्यः-एषैव विद्या-विज्ञानं यस्य स तथा, 'एयसुनने में न आई हो तो उसे अपने मन से पैदा कर 'भणइ' कहता-'सुणेमि' अरे ! भाई ! यह क्या बात है, जो तुम्हारी मैं इस बात को सुन रहा है। 'एवं पासमाणे भासमाणे गिण्हमाणे जाणमाणे' इसी प्रकार नहीं देखे को देखा और देखे हुए को अदेखा, कही हुई बात को नहीं कही हुई और नहीं कही हुई को कही हुई, नहीं लिये हुए को लिया हुआ और लिये हुए का नहीं लिया हुआ, और ज्ञात को अज्ञात और अज्ञात को ज्ञात कहता था। 'तए णं' इस प्रकार की वंचनामय अशुभतम मायाचारी-परिणति से ‘से एकाई स्ट्रकूडे एयकम्मे एयप्पहाणे एयविज्जे एयसमायारे' उस एकादि राष्ट्रकूट-मांडलिक राजा कि जो इस प्रकार वंचनामय मायाचारीपरिणति को ही अपना कर्तव्य समझे हुए था, जीवन में जिसके यही एक कार्य प्रधान था-यही जिसके जीवन की साधना थी, यही जिसका एक अनुपम विज्ञान था, और यही जिसके सिद्धान्तानुसार 'न सुणेमि' समन्यु नथा. तथा 'असुणमाणे' नी वाd Himansi न भावी जाय तो तेने पाताना मनमाथी पेहा शने 'भणइ' उता 'मुणेमि' भरे मा! मा शुवात छे २ भारी पातने सांमजी रह्यो छु. एवं पासमाणे भासमाणे गिण्हमाणे जाणमाणे' मा प्रभाव नाहना छ અને જેએલીને નથી જોઈ, કહેલી વાતને નથી કહી અને નહિ કહેલી વાતને કહી છે, નહિ લીધેલી (વસ્તુ )ને લીધી છે અને લીધેલીને નથી લીધી, અને જાણેલને નથી Mgat भने नथी ongो तेने छु, मेम पडतो तो. 'तए णं' मा प्रभा &ा मरेस मशुमतम भायायारी-परिणतिथी ‘से एक्काई रटकूडे एयकम्मे एयपहाणे :एयविज्जे एयसमायारे'. ते 6 राष्ट्रकूट-भांति नरेश २ मा પ્રમાણે પરંવચનામય માયાચારી–પરિણતિને જ પિતાનું કર્તવ્ય સમજાતે હતે, જીવનમાં જેને એજ કામ મુખ્ય હતું, એજ જેના જીવનની સાધના હતી, એજ જેના