________________
१२२
विपाकश्रुते संप्रयोगबहुल:-सातिसंप्रयोगः-लोकवचनायें बहुमूल्यवस्तुनि हीनमूल्यवस्तुसंमेलनं, स बहुलो यस्य स तथा, दुष्परिचयः दुस्सङ्गकारकः, दुश्चरितः दुष्टचरित्रवान, दुरनुनयः अविनीतः-केनापि वशीकर्तुमशक्यः, दुःशीला-दुष्ट-दोषयुक्तं शीलं-स्वभावो यस्य स तथा, दुर्वतः-दुष्ट-मांसभक्षणादिकं व्रतम्-आचरणं यस्य स तथा, 'दुप्पडियाणंदें' दुष्पत्यानन्दा-दुष्कृत्यकरणेष्वेव प्रसन्नमनाः, 'से णं एक्काई णामं रहकूडे' स खलु एकादिर्नाम राष्ट्रकूटा, 'विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसयाणं' विजयवर्धमानस्य खेटस्य पञ्चानां ग्रामशतानाम् ‘आहेबच्चं' आधिपत्यं, 'पोरेवचं' पौरोवत्यै-पुरोवर्तित्वम्-अग्रेसरत्वम् , 'साइसंपओगबहुले' सातिसंप्रयोगबहुल-अच्छी वस्तु में पुरी वस्तु को मिलाकर अच्छी वस्तु के भाव से वेच देता था। 'दुप्परिचए' दुष्परिचय-उसके दुष्टों की ही संगति थी, 'दुचरिए' दुश्चरित-षडा दुश्चरित्र था, और 'दुरणुणए' दुरनुनय-किसीका भी कहना नहीं मानने वाला था, 'दुस्सीले ' दुश्शील-इसका स्वभाव भी दुष्ट था, 'दुन्नए' दुव्रत-मांसभक्षणादिक करना इसका दैनिक आचार था। 'दुप्पडियाणंदे' दुष्पत्यानन्द-यह दुष्कृत्य करने में ही सदा आनन्द मानता था। ‘से णं एक्काई णाम रहलूडे' यह एकादि नामका मांडलिक नरपति 'विजयवद्धमाणस्स णयरस्स पंचण्डं गामसयाणं आहेवच्चं' इस वर्द्धमान खेट के पांचसौ गांवों का स्वयं अधिपतित्व करता था
और अपने नियोगिजनों से भी उनका अधिपतित्व कराता था। -'पोरेवच्चं' स्वयं उनका मुखिया बना हुआ था, और अपने नियोगिछुपापनातो, 'साइसंपओगबहुले' सारी वस्तुमा नारी वस्तु भगवान ते सारी पस्तुना भाषया या तो तो. 'दुप्परिचए' तेन दुष्ट माणुसोनी सोमत
ती, 'दुचरिए' पर भू यात्रि-वाणोतो, भने 'दुरणुणए' धनु 8j नहि भानवापाको हतो, 'दुस्सीले' शाम तो-तनावमा पटते, 'दुव्वर' हुतातो-भांसमक्ष बुंततो तेना भेशाने मान्या२ तो, भने 'दुप्पडियाणंदे'
प्रत्यानडतो-४४४२वामा मेशां मानन्द मानतो त.'से णं एक्काई णाम रहकूडे ' ते सादि नामनी मांडसिशन, 'विजयवद्धमाणस्स जयरस्स पंचण्डं गामसयाणं आहेवचं' मा पद्धभान ना पांयसे। गामार्नु पाते अधिपतिय કરતે હતોઅને પિતાના નિગી જને પાસે તે ગામનું અધિપતિત્વ કરાવતો હતે. -:पोरेवचं 'पोते तेभानो परी जनान रहता तो, भने ते पोताना नियोजनाने
। सुनार विश्वासु भासाने ) ५ तेना भुभ्य मनाच्या ता.'सामिच"