________________
प्रियदर्शिनी टीका. अ० २७ शठतास्वरूपवर्णनम् अभीक्ष्णम् वारं वारं विध्यति-प्राजनकस्य आरया व्यथयति । ततो गलिकृषभादिः किं करोति ? इत्याह-एगो अंजइ' इत्यादि । एकः शमिलां युगरन्ध्रकीलिकां भनक्ति-त्रोटयति । तथा-एको वृषभः उत्पथप्रस्थितः उन्मार्गगामी भवति ॥४॥
किं चमूलम् एगो पडइ पासणं, निवेसँइ निवज्जई।
उक्कुईइ उप्पिँडइ सँढे बालगंविं वएँ ॥५॥ छाया-एकः पतति पार्थेन, निविशति निपद्यते ।
___उत्कूदते उत्स्फिटति, शठो बालगीं व्रजति ॥ ५॥ टीका-'एगो' इत्यादि। अको गलिवलीवई पार्श्वन वामेन दक्षिणेन वा पार्श्वेन पतति, अन्यः कश्चिद् फिर अतिरुष्ट हुवा खलंक बैलों को चलाने वाला सारथि क्या करता है ? सो कहते हैं--' एगं'-इत्यादि !
अन्वयार्थ--इस तरह रुष्ट होकर वह सारथि आवेश में आकर (एगे पुच्छम्मि डसइ-एकं पुच्छे दशति ) एक बैल को पूछ में काट खाता है तो (एगे-एकम् ) एक-दूसरे बैलों को (अभिक्खणं विधइअभीक्ष्णम् विध्यति ) बार बार आर से व्यथित करता है। इस प्रकार होने पर (एगो समिलं भंजइ-एकः शमिलां लनक्ति) एक बैल शमिलाजूए की खीली को तोड़कर भाग जाता है और (एगो उपहपढिओएक: उत्पथे प्रस्थितः) एक दूसरा उन्मार्ग-उपट मार्ग में जाता है॥४॥ फिर भी- एगो-इत्यादि ।
अन्वयार्थ--(एगो-एकः) कोई एक दुष्ट बैल (पासेणं पडइपोर्बेन पतति ) वाम पार्श्व से दक्षिण पाव से जमीन पर गिर पडता है।
આવા ગળિયા બળદને કારણે ખીજાયેલા સારથી શું કરે છે તે કહે છે " एगं" त्यादि।
मल्क्याथ-एगं पुच्छम्मि डसइ-एकं पुच्छे दशति ये महना पूछाने म मरे छ भने एगे-एकम् मीत मन अभिक्खणं विधइ-अभिक्ष्णम् विध्यति मारथी पारपार व्यथित ४२ छे. २३॥ प्रारे थवाथा एगो समिलं भंजइ-एकः शमिलं भनति मे १५ घाससने ना तय छ भने एगो उप्पहपढ़िओएकाउत्पथे प्रस्थितः मान्न माग भागे माजय छे. ॥४॥
३२ ५-" एगो"-त्यादि। मन्पयार्थ -एगो-एकः धिमे दुष्ट ५४ या पासेणं पडइ-पश्वेन