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________________ .૭૮ सागरो मे तु, उक्कोसेण वियाहिया । पढभाए जहनेणं, दसवासहस्तिया । १६१ ॥ तिपणैवै सागरा है, उक्कोसेण वियाहियां । दोच्चाए जहोणं, एंगं तु सागरोवमं ॥ १६२ ॥ सत्तेव सांगरा ऊ, उक्कोसेण वियाहिया । तइयाएं जहन्त्रेणं, तिष्णेवं सागरोसा ॥ १६३ ॥ दस सागरोवमा ऊँ, उक्कोसेण वियाहिया । चउत्थी जत्रेणं, सत्तेव सागरोवमा ॥१६४॥ सतरेंस सागराऊँ, उक्कोण वियाहिया । पंचमांए जहनेणं, दर्स चैव सागरोसा ॥१६५॥ बावीस सागरों ऊं, उंकोलेण वियाहिया । छट्ठीए जर्हन्त्रेणं, सत्तरस सागरीवसा ॥१६६॥ तेत्तीसा सागरा ऊँ, उक्कोण वियोहिया । सत्तमाए जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥१६७॥ जा चैव ये ऑउठिई, नेरइयाणं वियाहिया । सा 'तेसिं कायठिई, जहन्नुहोलिया मेवे ॥ १६८ ॥ अनंतकालमुक्की, अंतोनुतं जहनयं । विजम्मि सए काए, नेरइयाणं तु अंतरम् ॥१६९॥ एएसिं वष्णओ वे, गंधओ रंसफासओ । संठाण देसओ वावि, विहगाई सहसओ ॥ १७०॥ छाया - नैरयिकाः सप्तविधाः पृथिवीषु सप्तसु भवति । रत्नाभा शर्कराभा, वालुकामा च आख्याताः ॥ १५७ ॥ पङ्काभा धूमाभा, तमः तमस्तमस्तथा । कल उत्तराध्ययन सूत्र AAN
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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