________________
८७२
उत्तराध्ययन 'संतई पप्पणाईया' इत्यादि । इतः प्रभृति गावापञ्चकं पागू व्याख्यातपायं सुगमं च ॥ १४१ । १४२ । १४३ । १४४ । १४९ ॥ है। (संतई पप्प-सन्तति प्राप्य) प्रवाहकी अपेक्षा ये जीव (अणाईथा वि य अपज्जवसिथा-अनादिक्षाः अपि च अपवलिताः) अनादि एवं अनंत हैं। (ठिई पडच्च-स्थिति प्रतीत्य) सिलिकी अपेक्षा विचार करने पर (साईया वि य सपज्जवसिया-सादिका अपि च लपर्यवतिताः) सादि
और सांत हैं। (उझोलेण-उत्कर्षण) उत्कृष्टले (तेइंदिय आउठिईत्रीन्द्रियाणाम् आयु स्थितिः) त्रीन्द्रिय जीवोंकी आयुः ( एगणपण्णएकोनपंचाशत् ) उनचाल ४९ दिनरातकी है। तथा (जहन्नियं-जघन्यम् ) जघन्यसे ( अंतोमुहुत्त-अन्तर्मुहूर्त) अन्तर्मुहूर्तकी है। (ते इदियाणं काउठिह-त्रीन्द्रियाणाम् कायस्थितिः)इन तीन इन्द्रियवाले जीवोंकी (तंकायं अमुंचओ-तंकायं अणुचता)तीन इन्द्रियके शरीरको लगातार प्राप्त करते रहने पर (कायठिई-सायस्थितिः) कास्थिति (उल्होसा-उत्कृष्टा ) उत्कृष्टा (संखिज्जकालं-लख्येयकाल) संख्यातकाल प्रमाण है। (जहन्नया अंतोमुहत्तं-जघन्यिका अन्तर्मुहूर्तम्) जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। त्रीन्द्रिय जीवोंका अंतरकाल निगोदकी अपेक्षा उत्कृष्ट अनंतकालका है जधन्य अन्तर्मुहर्तका है। वर्ण गंध रस स्पर्श संस्थान रूप देशकी अपेक्षाले बहुतसे भेद होते हैं ॥१३७-१४५ ॥
२भावेस छ. संतई पप्प-सतति प्राप्य पानी अपेक्षा २॥ ॐ अणाइया वि य अपज्जवसिया-अनादिका. अपि च अपर्यवसिता मनाहि भने मन त छे. ठिई पडुच्च-स्थिति प्राप्य स्थितिनी अपेक्षा विया२ ४२पाथी साइया वि य सपज्जवसिया-सादिकाः अपि च सपर्यवसिताः साही मने सांत छ. उक्कोसेणउत्कर्षेण Grकृष्टया तेइंदिय आउठिई-त्रीन्द्रियाणम् आयुस्थितिः ऋण छन्द्रय
वानी मायु एगुणपण्ण-एकोनपञ्चाशत् योग] ५यास (४८) हिवस शतना छ तथा जहन्नियं-जघन्यम् ०४५न्यथा अंतोमुहुत्तं-अन्तर्मुहूत्तम् मतभुइतनी छ तेइंदियाणं काउठिई-त्रीन्द्रीयाणम् कायस्थितिः त्रयन्द्रियवाणा वानी त कार्य अमुञ्चओ-तं कायं अमुञ्चताम् ! धन्द्रियना शरीर धारी शत पास ४२॥ २वाथी काउठिई-कायस्थितिः यस्थिति उक्कोसा-उत्कृष्टा स्कृष्ट संखेज्जकालंसंख्येयकालम् मसच्यात छ. जहन्निय अन्तोमुहुतं-जघन्यिका अन्तर्मुहर्तम् જઘન્ય અન્તર્મુહૂર્ત છે. ત્રણે ઈદ્રિય જીવોના આ તરકાળ નિગોદની અપેક્ષા ઉત્કૃષ્ટ અનંતકાળને છે. જઘન્ય અંતરમું હૂર્તાનું છે. વર્ણ, ગંધ, રસ, સ્પર્શ અને સંસ્થાનરૂપ દેશની અપેક્ષાથી ઘણા ભેદ છે. મે ૧૩૭ ૧૪પે છે