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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे इत्येते-तथा एवमादाय एतत्पभृतिका एतत्सदृशाश्च द्वीन्द्रिया जीवा अनेकथा सन्ति । ते सर्वे लोकैकदेशे लोकैकभागवर्तिनः, न तु सर्वत्र विद्यमाना आख्याताः । अतः पर गाथापश्वकं व्याख्यातमाय, सुगम च ॥ १३१-१३६॥ उत्कृष्ट स्थिति इन दीन्द्रिय जीवोंकी कही गई है। तथा (जहन्निया अंता मुहुत्तं-जयन्यिका अन्तर्मुहूर्तम्) जघन्य अन्तर्मुहूर्तको । इसी तरह (कायठिई-कायस्थितिः) कायस्थिति (वेइंदिय-दीन्द्रियाणाम् ) इन द्वीन्द्रिय जीवोंकी (तं कायं तु असुंचाओ-तं काय अमुंचतास् ) लगातार उस दीन्द्रियके शरीरको नहीं छोड़ने पर (उझोसं-उत्कृष्टं ) उत्कृष्टरूपसे (संखिज़्ज कालं-संख्येयकालम् ) संख्यात कालकी तथा (जहन्नयं-जघन्यिका) जघन्यरूपसे (अंतोमुहत्त-अन्ततम्) अन्तर्मुहर्तकी कही गई है। (वेइंदिय जीवाणं-द्वीन्द्रियाणाम् जीवानाम्) तथा इसी तरह इन द्वीन्द्रियजीवोंका (अंतरं-अन्तरम् ) अंतरकाल-विरहकाल (उकोसं-उत्कृष्टम् ) उत्कृष्ट (अणंतकाल-अनंतकालम् ) निनादकी अपेक्षा अनंतकालका और (जहन्नयं-जधन्यकम् ) जधन्य ( अंतोहुत्तं-अन्तर्मुहूर्तम् ) अन्तमुहूर्तका कहा गया है। (एएसिं वण्णओ गंधओ रसफासओ विय संठाणदेसओ लहस्सओ विहाणाइं-एतेषाम् वर्णतः गंधतः रसस्पर्शतः अपि सस्थानदेशतः वा सहस्रशः विधानानि) इन हीन्द्रिय जीवोंके वर्ण की, गंधकी, रसकी, स्पर्शकी तथा लंस्थानरूप देशकी अपेक्षा और भी बहुतसे खेद हैं ॥ १२८-१३६ ॥ धन्द्रियाणावेनी मता छ तथा जहन्निया अंतोमुहुत्तं-तथा जयन्यिका अन्तर्मुहूर्तम् घन्य अन्त कृतनी मा प्रमाणे कायठिई-कायस्थितिः ।य स्थिति वेइंदिय-द्विन्द्रियाणाम् यानेन्द्रिय वानीतं काय तु अमुंचओ-तं कायं अमुञ्चताम् मेधारी माये धन्द्रियाणाशरीरने नही छ। पानी उकोसं-उत्कृष्टं ८३५थी संखिज्जकालं-संख्येयकालम् सयानी तथाजहन्निय-जयन्यिका धन्य ३५थी अंतोमुहत्त-अन्तर्मुहर्तम मन्तभूतनी सेवामी मावेस छे तथा वेइंदिय जीवाणं-द्विन्द्रियाणामू जीवानाम् मेवी शते थे मे धन्द्रिय छवोनो अंतर-अन्तरम् मत२४ विडा उक्कोसं-उत्कृष्टं उत्कृष्ट अणंतकालं-अनन्तकालम् निगोहनी अपेक्षा मनत जना मने जहन्नयं-जघन्यकम् वन्य अंतोमुहुत्त-अन्तर्मुहूर्तम् मन्तभुइतना डर छ. एएसि वण्णओ गंधओ रसफाससो वि संठाणदेसओ सहस्सओ विहाणाईएतेषाम् वर्णतः गन्धतः रसस्पर्शतः अपि सस्थानदेशतः मा मे धन्द्रिय वामा વર્ણની, ગંધની, રસની, સ્પર્શની તથા સંસ્થાનરૂપ દેશની અપેક્ષાથી બીજા પણ ઘણું ભેદ છે. તે ૧૨૮–૧૩૬ !
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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