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प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ वनस्पतिकायजीवनिरूपणम्
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पनकोपलक्षितानां=सामान्यतो वनस्पतीनां तं वनस्पतिरूपं, कायम् अमुञ्चताम् = अत्यजतां, कायस्थितिः, अनन्तकालम् उत्कृष्टा, जघन्या तु अन्तर्मुहूर्तम् । इह सामान्येन वनस्पतिजीवान् निगोदान् वा आश्रित्यानन्तकालमुच्यते, विशेषविवक्षायां तु प्रत्येक शरीर बादरवनस्पतीनां बादर निगोदानां चोत्कृष्टा कार्यस्थितिः सप्ततिकोटी कोटिसागरोपमप्रमाणा, जघन्या तु अन्तर्मुहूर्तप्रमाणैव । सूक्ष्मनिगोदानां
साधारण जीवोंकी उत्कृष्ट और जघन्यस्थिति दोनों ही अन्तर्मुहूर्त की है । इस प्रकार पूर्वोक्त बादर पर्याप्त पृथिवीकाय एवं बादर पर्याप्त अप्काय जीवोंकी तथा आगे कहे जाने वाले बादर पर्याप्त तेजस्काय और वायुकाय जोवोंकी यह उत्कृष्ट स्थिति होती है। तथा जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्तकी होती है । (तं कार्य अमुचओ पनगाणं तं कार्य अमुचताम् पनकानाम् ) वनस्पतिरूप शरीरको नहीं छोड़ते हुए ऐसे इन पनकोपलक्षित सामान्य वनस्पति जीवोंकी (कार्यठिई - काय स्थितिः) कार्यस्थिति (उक्कोसाउत्कृष्टा ) उत्कृष्ट ( अनंतकालं - अनन्तकालम् ) अनंतकालकी है तथा (जन्निया - जघन्या) जघन्य स्थिति (अंतोमुहुतं - अर्मुहूर्तम् ) अन्तर्मुहूर्त की है । यहां जो कायस्थिति उत्कृष्टरूपसे अनंतकाल कही है वह सामान्यसे वनस्पति जीवों को अथवा निगोद जीवोंको आश्रित करके कही है। विशेषरूप से यह कायस्थिति प्रत्येक शरीर बादर वनस्पति जीवोंकी और बादर निगोद जीवोंकी उत्कृष्टरूपसे सत्तर (७०) कोटी - कोटि सागरो
સાધારણ જીવાની ઉત્કૃષ્ટ અને જઘન્ય સ્થિતિ અને અંતર્મુહૂતની છે. આ પ્રમાણે પૂર્વોક્ત ખાદર પર્યાપ્ત પૃથવીકાય અને માદર પર્યાપ્ત અધૂકાય જીવાની આગળ કહેવામાં આવનાર ખાદર પ્રčસ તેજસ્કાય તથા વાયુવેની આ उत्सृष्ट स्थिति होय छे तथा धन्य स्थिति अंतर्मुहूर्तनी होय छे. तं कार्य अमुचओ पनगाणं - तं कार्यं अमुंचताम् पनकानाम् वनस्यति३य शरीरने न छोडनार मेवा मे यनयलक्षित सामान्य वनस्पति भवानी कार्यठिई - कायस्थितिः य स्थिति उक्कोसा–उत्कृष्टा त्ष्ट अणंतकालं - अनन्तकालम् सनतानी छे तथा जहन्निया–जघन्यका ४धन्य स्थिति अंतोमुहुत्तं - अन्तमुहूर्त्त अन्तर्मुहूर्तनी छे. અહીં જે કાયસ્થિતિ ઉત્કૃષ્ટ રૂપથી અનંત કાળની કહી છે તે સામાન્યથી વનસ્પતિ જીવાને તથા નિગેાદ જીવાને આશ્રિત કરીને કહેલ છે. વિશેષરૂપથી આ કાયસ્થિતિ પ્રત્યેક શરીર માદર વનસ્પતિ જીવાની અમે માદર નિગેાદ જીવાની ઉત્કૃષ્ટરૂપથી સીત્તેર કરડ (૭૦) કરેાડ–સાગરાપમ પ્રમાણ છે તથા જઘન્ય
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