________________
૮૪૮
उत्तराध्ययनसूत्रे ___ वनस्पतीनाम् बनस्पतिकायजीवानाम् , आयुः भवस्थितिरित्यर्थः, वर्षाणां दश सहस्राण्येव-दशसहस्रवर्षाणीत्यर्थः, उत्कृष्टकं भवति, जघन्यकं तु अन्तर्मुहूर्तम्। इदसुत्कृष्टं दशसहस्रवर्षमानमायुः प्रत्येक शरीरपर्याप्तवादरवनस्पत्यपेक्षयाऽभिहितम् , साधारणानां जघन्यत उत्कृष्टतश्चान्तर्मुहूर्तमेवायुष्कमानम् । एवं पूर्वोक्तयोः पृथिवीकायाऽप्काययोः वक्ष्माणयोश्च तेजोवाय्योः पर्याप्तबादराणामेव उत्कृष्टस्थितिर्भवतीति बोध्यम् । जघन्यकं जघन्यायुः अन्तर्मुहूर्तम् ॥ १०३ ॥ पनकानां=
-
व्याख्याताः) एक ही प्रकारके है क्यों कि इनमें नानाप्रकारता नहीं होती है। (सुहमा-मूक्ष्माः ) ये मुक्ष्म वनस्पतिकाय जीव (सव्वलोगम्मि-सर्व. लोके) समस्त लोकमें भरे हुए है। तथा (बायरा-बादराः) बादर वनस्पतिकाय जीव (लोगदेसे-लोकदेशे) लोकके एकदेशमें रहते है। ये दोनों प्रकारके जीव (संतई पप्प-सन्तति प्राप्य) सन्ततिकी अपेक्षासे (अणाईया वि य अपज्जवलिया-अनादिकाः अपि च अपर्यवसिताः) अनादि और अनंत है । तथा-(ठिई पडुच्च-स्थितिं प्रतीत्य ) भवस्थिति एवं कायस्थितिकी अपेक्षा (साइया सपज्जवसिया-सादिकाः सपर्यवसिताः) सादी और सांत है। (वणस्सईण-वनस्पतीनाम् ) इन वनस्पतिजीवोंकी (उक्कोसा आऊं-उत्कृष्टकं आयुः) उत्कृष्ट आयुः (दसचेव वासाणु सहस्साइं-दशैव वर्षाणाम् सहस्राणि) दशहजार वर्षकी तथा (जहनियंजघन्यक) जघन्य (अतोमुहत्त-अन्तमुहूर्तम् ) अन्तर्मुहूर्तकी है। यहां यह उत्कृष्ट स्थिति प्रत्येक शरीर पर्याप्त बादर वनस्पतिकी अपेक्षा कही है।
२९ , तनामा नुहा नुहा प्रारी लाता नथी. सुहुमा-सूक्ष्माः ॥ सूक्ष्म वनस्पतिय ०१ सव्वलोगम्मि-सर्वलोके समस्त भां मरेख छ तथा बायरा-बादराः माह२ वनस्पतिशय ७३ लोगदेसे-लोकदेशे दोन थे शमां २९ छ मा भने ४२ना ७ संतई पप्प-संतति प्राप्य संततिनी मपेक्षाथी अणाइया वि य अपज्जवसिया-अनादिकाः अपर्यवसिता. मना मने मन त छ. तथा ठिई पडुच्च-स्थिति प्रतीत्य सपस्थिति म यस्थितिनी अपेक्षा साइया सपज्जवसिया-सादिका' सपर्यवसिताः साही अने सांत छ. वणरसईणवनस्पतीनाम् वनस्पति वानी उक्कोसा आउं-उत्कृष्टकं आयु ट मायु दसचेव वासाणुसहम्साई-दशैव वर्षाणाम् सहस्राणि इस तर पनी तथा
जहन्नियं-जघन्यकं धन्य अंतोमुहुत्तं-अन्तमुहूर्तम् मतभुइतनी छे. सही मा -~-- ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પ્રત્યેક શરીર પર્યાપ્ત બાદર વનસ્પતિની અપેક્ષથી કહેલ છે.