________________
प्रियदर्शिनी टीका अ० ३६ नीलादिवर्णानां भङ्गनिरूपणम् मूलम् - वण्णओ पीए जे' उ, भईए से उ गंधओ । रसओ फासओ चैवं, भइऐ संठीणओ विर्ये ॥२६॥
छाया - वर्णतः पीतको यस्तु, भाज्यः स तु गन्धतः । रसतः स्पर्शतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ २६ ॥ टीका-'वण्णओ पीयए' इत्यादिव्याख्या प्राग्वत् । भङ्गविंशति गणना प्राग्वत् || २६ ||
७१९
तरह वह (रसओ फासओ संठाणओ भइए - रसतः स्पर्शतः संस्थानतः भाज्यः) रसकी अपेक्षा स्पर्शकी अपेक्षा तथा आकारकी अपेक्षा भी भाज्य जानना चाहिये । अर्थात् ऐसा नियम नहीं हो सकता है कि जो पौगलिक स्कन्ध आदि वर्णकी अपेक्षा लोहित होगा वह नियमित गंध, रस, स्पर्श एवं आकारवाला ही होगा। इस तरह दो गंध, पांच रस, आठ स्पर्श पांच संस्थान ये सब मिलकर बीस हो जाते हैं । अतः इस लोहितवर्णके भी पहिलेकी तरह बीस भंग हो जाते हैं ॥ २५ ॥
अन्वयार्थ - ( वण्णओ - वर्णतः) वर्णकी अपेक्षा (जे-यः) जो (पीयएपीतकः) पीला होता है (से- सः) वह (गंधओ भइए - गंधतः भाज्यः) गंधकी अपेक्षा भाज्य कहा गया है । इसी तरह (रसओ फासओ चेव संठाणओ य भइए - रसतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भाज्यः) रसकी अपेक्षा स्पर्शकी अपेक्षा तथा संस्थानकी अपेक्षा भी भाज्य जानना चाहिये । इसके भी वीस भंग हो जाते हैं ||२६||
જોઈ એ. અર્થાત્ એવા નિયસ હાઈ શકે નહીં' કે, જે પૌલિક સ્ક ́ધ આદિ વની અપેક્ષા લેાહિત-લાલ જ હશે તે નિયમિત ગંધ, રસ, સ્પર્શ અને આકારવાળા જ હશે. આ પ્રમાણે બે ગંધ, પાંચ રસ, આઠે સ્પર્શ, પાંચ સંસ્થાન આ સઘળા મળીને વીસ થઈ જાય છે, આ કારણે એ લાલ રંગના या अथभनी भाइ वीस था लय छे ॥ २५ ॥
छे.
२मन्वयार्थ—वण्णओ-वर्णतः वर्णानी अपेक्षा जे - यः ? पीयए-पीतकः भीळु होय छे, से- सः ते गंधओ भइए-गंधतः भाज्यः गंधनी अपेक्षा लाल्य हेवायेस प्रमाणे रसओ फासओ चेव संठाणओ य भइए - रसतः स्पर्शतः संस्थानतश्च भोज्यः रसनी अपेक्षा, स्पर्शनी अपेक्षा, तथा संस्थाननी अपेक्षा यशु लाल्य सभनवा लेाये. यानां या वीस लंग था लय छे, ॥ २६ ॥