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प्रियदर्शिनी टीका अ० ३४ स्थितिद्वारनिरूपणम् धिका नीलाया लेश्याया जघन्येन स्थितिर्भवति । पल्योपमासंख्येयं च भागम् उत्कृष्टा स्थितिभवति । नवरं-मध्यमायुष्काणां देवानां तावस्थितिकत्वाद् बृहत्तरोऽयमसंख्येय भागो गृह्यते ॥ ४९ ॥ ___ कापोत्याः स्थितिमाह-- मूलम्-जा नीलाए ठिई खल, उनोसा सा समयमभहिया।
जहन्नेणं काऊंए, पलियालेसंखंचे उनोसा॥ ५० ॥ छाया--या नीलायाः स्थितिः खलु उत्कृष्टा सा तु समयाऽभ्यधिका ।
जघन्येन कापोत्याः, पल्योपमासख्येयं च उत्कृष्टा ॥ ५० ॥ टीका--'जा नीलाए' इत्यादि-- या नीलायाः-नीललेश्याया उन्कृष्टा स्थितिरुक्ता, सातु-सैव समयाभ्यधिका कापोत्यालेश्याया जघन्येन स्थितिभवति । पल्योपमासंख्येयं च भागं तस्या ( उक्कोसा ठिई-उत्कृष्टा स्थितिः) उत्कृष्ट स्थिति है (सा-सा ) वही (समयमन्भिहिया-समयाभ्यधिका) एक समय अधिक होकर (नीलाएनीलायाः) नीललेश्या की (जहन्नेणं-जधन्येन) जघन्य स्थिति है। तथा नीललेश्याकी (पलियमसंखं उक्कोला-पल्योपमासंख्येय उत्कृष्टा ) एक पल्य के असंख्याल- भाग प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति है। मध्यम आयुवाले देवों की इतनी स्थिति होनेसे यहाँ पल्यका असंख्यातवां भाग (अधिक) ग्रहण किया गया है। ४९ ॥
कापोतीलेश्या की स्थिति इल' प्रकार है-'जा लीलाए' इत्यादि ।
अन्वयार्थ-(जा-या) जो (नीलाए-लीलायाः) नीललेश्या की (उक्कोसा-उत्कृष्टा ) उत्कृष्ट स्थिति कही गई है (साउ-सातु) वही ( काउए जहण्णेणं-कापोत्या जघन्येन) कापोतीलेश्याकी जघन्य स्थितिः उत्कृष्ट स्थिति छ सा-सा ते समयमभिहिया-समयाभ्यधिका मे समय पधु थ ने नीलोए-नीलायाः नीयवेश्यानी जहन्नेणं-जघन्येन धन्य स्थिति छे. तथा नीलयोश्यानी पलियमसंख-उक्कोसा-पल्योपमासंख्येय उत्कृष्टा એક પલ્પના અસંખ્યાતમા ભાગ પ્રમાણ ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ છે. મધ્યમ આયુવાળા દેવની એટલી સ્થિતિ હોવાથી અહીં પલ્યને અસંખ્યાતમા ભાગ બૃહત્તર (અધિક) ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે, એક
पाती वेश्यानी स्थिति ॥ १२नी छ-"जा नीलाए" त्या ! मन्या-जा-या २ नीलाए-नीलायाः नारश्यानी उक्कोसा-उत्कृष्टा See स्थिति मतापामा मावद छ साउ-सातु २४ काउए जहण्णेणं-कापोत्या जघन्येन