________________
६०८
उत्तराध्ययनसूत्रे नवोदितः,आदित्यः सूर्यस्तत्संनिभा तथा-शुकतुण्ड प्रदीपनिभा शुकः पक्षिविशेषः, तस्य तुण्डं-मुखं, शुकतुण्डं तच्च प्रदीपश्च, तन्निभा-तत्सदृशी, रक्तवर्णा भवतीत्यर्थः।।७॥
पद्मावर्णमाहमूलम्-हरियालभेयसंकासा, हलिदा भेयसन्निभा ।
सांसणकुसुमनिभा, पद्मलेसा उ वण्णओ ॥८॥ छाया--हरितालभेदसंकाशा, हरिद्राभेदसन्निभा ।
__सणासनकुसुमनिभा, पद्मलेश्या तु वर्णतः ॥८॥ टीका--' हरियाल' इत्यादि--
पद्मलेश्या तु वर्णतः वर्णमाश्रित्य, हरितालभेदसंकाशा हरिताला-धातुविशेषः, तस्य भेदः-द्विधाभावः तत्संकाशा-तत्सदृशी, हरितालस्य भेदनेन खंडकरणे तपूर्ण प्रकर्षों भवतीति भेदग्रहणम् , तथा-हरिद्राभेदसंनिभा-हरिद्रा-पिण्डरूपा अचूर्णिता, तस्या यो भेदस्तत्संनिभा, तथा-सणासनकुसुमनिभासणः-वनस्पतिविशेषः, असना-बीजकवृक्षस्तयोः कुसुम, पुष्पं तन्निभा-तत्सदृशी पीतवर्गा भवतीत्यर्थः ॥ ८॥ अभिनवतत्काल उगेहुवे उदित सूर्य के समान है। (सुयतुंड पईवनियाशकभीण्डप्रदीपनिमा) शुक की चोंच के समान तथा प्रदीप के समान रक्तवर्ण वाली है ॥७॥
अब पद्मलेश्या का वर्ण कहते हैं--'हरियाल०' इत्यादि। . अन्वयार्थ-(पझलेसा-पद्मलेश्या) पद्मलेश्या (वण्णओ-वर्णतः) वर्ण की अपेक्षा (हलिदाभेय सन्निभा-हरिद्राभेदसंनिभा) हल्दी के खंड ट्रकडे के वर्ण के समान है। (हरियालभेयसंकासा-हरितालभेदसंकाशा) हरिताल के खंड करने पर जो वणे विशेष होता है उसके समान है। (सणासण कुसुमनिभा-सणासनकुसुमनिभा) सन और बीजक वृक्ष के पुष्प के समान है॥८॥ छ. सुयतु डपईवनिभा-शुकतुण्डप्रदीपनिभा पाटनी यांयना वो तथा हिवानी न्यातिन समात २४त पाणी छे. ।। ७ ।।
डवे पवेश्याना व ४९ छ-" हरियाल" त्याला
मक्याथ-पद्मलेसा-पद्मलेश्या पनवेश्या वण्णओ-वर्णतः पानी अपेक्षा हलिहाभेयसन्निभा-हरिद्राभेदसंनिभो ४२ना टु४ाना २२वी छ हरियालभेय संकासा-हरितालभेदसंकाशा हुजना ४८४१ ४२वाथी महरथी रे माय छतवा २ समान छ सणासणकुसुमनिभा-सणासनकुसुमनिभा सण तमगर भी४४ वृक्षना युध्यता रवी छ. ॥ ८ ॥