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________________ उत्तराध्ययनसूत्रे प्रतिज्ञातमाहमूलम्-नाणस्सविरणिज, दसावरणं तहाँ । वेयणिजं तहामोह, आउकस्मं तहेव ये ॥२॥ नामकरसं च गोयं च, अंतरायं तहेवं य । एंवमेयाइ कमाई, अहेव उ समांसओ ॥३॥ छाया-ज्ञानस्यावरणीय, दनावरणं तथा । वेदनीयं तथा मोहस् , आयुष्कर्म तथैव च ॥२॥ नामकर्म च गोत्रं च, अन्तरायं तथैव च । एवमेतानि कर्माणि, अष्टैव तु समासेतः ॥३॥ टीका-'नाणस्तावरणिज्ज' इत्यादि ज्ञानस्य-ज्ञानम्-अवबोधलक्षणो विशेषविषयक आत्मनः पर्यायस्तस्य, आवरणीयम्-आवारकम् , आच्छादकं भास्करस्य मेघ इव १ । तथा-दर्शना अब उन आठ कमों के नाम कहते हैं-'नाणसावरणिज्ज इत्यादि। अन्वयार्थ-ज्ञानगुण को आवरण करने वाला (नाणावरणिज्जेज्ञानावरणीयं ) ज्ञानावरण १, दर्शनगुणको आवरण करने वालो (दसणावरणं-दर्शनावरणं )दर्शनावरण २, सुख दुःख देने वाली (वैयणिज्जवेदनीयं ) वेदनीय कर्म, आत्मा की परिणति विपरीत बनाने वाला (मोह-मोहम्) मोहनीय कर्म ४, जीव को विवक्षित पर्याय में रोकरखने वाला (आउकम्म-आयुष्कर्म) आयुकर्म ५, शरीरादिक की रचना करने वाला (नामकस्म-नालकर्म) नामकर्म ६, उच्चनीच कुल में जीव को हुवे से माह भीना नाम ४९ छे-" नाणम्सावरणिज्ज" त्यादि। अन्वयार्थ:-ज्ञान गुरुतु याव२] ४२१वाणु नाणेवरणिज-ज्ञानावरणीयं जाना१२ (१), शन शुगुर्नु भाव ४२नार दसणावराणिज दर्शनावरणं हशनावर (२), सुमदुमने मानार वेयणिज्ज-वेदनीयं वहनीय ४(3), मात्माना परिणति विपरीत मनाना२ मोह-मोहम् भानीय भ (४), मेडीनी भा४ ते विवक्षित पर्यायमा 31 रामनार आउकम्म-आयुष्कर्म आयु में (५), शरीरानी श्यना ४२वापाणु नामकम्म-नामकर्म नाम भ (6), स्य - य भी अपने उत्पन्न ४२ना२ गोवं-गोत्र गोत्र भ (७), हानामा
SR No.009355
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1039
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size75 MB
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