________________
उसराध्ययनसूचे
, स्वाध्यायमाह* मूलम्-वायाँ पुच्छणा चैव, तहे परियणा ।
अणुप्पेहा धम्मकहा, सज्झाओ पंचही भवे ॥३४॥ छाया--वाचना प्रच्छना चैत्र, तथैव परिवर्तना ।
अनुप्रेक्षा धर्मकथा, स्वाध्यायः पञ्चधा भवति ॥३४॥ " टीका--'वायणा' इत्यादि।
सु-सुष्टु, आ-मर्यादया, अध्ययः-अध्ययनं, स्वाध्यायः-स्वाध्यायनामकं तपः, पञ्चधा भवति, वाचना, प्रच्छना, परिवर्तना अनुप्रेक्षा, धर्मकथाचेति । वाचनादयः शब्दाः प्रागेकोनत्रिंशत्तमेऽध्ययने व्याख्याता ॥३४॥ होता है। इस तपमें (आसेवणं जहाथामं वेयावच्चं तमाहियं-आसेवन यथास्थाम वैयावृत्यं तदाख्यातम् ) अपनी शक्तिके अनुसार आचार्य आदिकोंके लिये आहार आदिका ला देना यही उनकी सेवा है और यही वैयावृत्य तप है ॥३३॥
स्वाध्याय तप इस प्रकार है-'वायणा' इत्यादि ।
अन्वयार्थ (सज्झायो पंचहा भवे-स्वाध्यायः पञ्चधा भवति) अच्छी तरह मर्यादानुसार अध्ययन करना इसका नाम स्वाध्याय है। यह स्वाध्याय अन्तरंग तप है । यह पांच प्रकार का है । वे.पांच प्रकार ये हैं-(वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियणा अणुप्पेहा धम्मकहा-वाचना, पृच्छना चैव तथैव परिवर्तना अनुप्रेक्षा धर्मकथा) वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा। वाचना आदिकों का अर्थ पहिले उन्तीसवें अध्ययन में लिखा जा चुका है ॥ ३४॥ आसेवणं जहाथाम वेयावच्चं तमाहि -आसेवनं-यथास्थाम वैयात्रात्यं. तदाख्यातम् પિતાની શક્તિના અનુસાર આચાર્ય આદિકના માટે આહાર આદિત લાવી આપવું એજ એમની સેવા છે, અને એજ વૈયાવૃત્ય તપ છે. ૩૩
स्वाध्याय त५ मा ५२नु छ-" वायणी" त्याह
म-पयार्थ-सज्झायो पंचहा भवे-स्वाध्यायः पञ्चधा भवति भयाहा मनुसार સારી રીતે અધ્યયન કરવું તેનું નામ સ્વાધ્યાય છે આ સ્વાધ્યાય અન્તરંગ त५ छ २मा पांय अारनु छ मे यांय ४१२ । छे-वायणा पुच्छणा चेव तहेव परियट्टणा अणुप्पेहा धम्मकहा-वाचना पृच्छना चैव तथैव परिवर्तना अनुप्रेक्षा
वायना, पूछना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा भने यथा, वायना । अर्थ ५९i गणत्रीसभा मध्ययनमा वाई ये छ, ॥३४॥