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________________ प्रियदर्शिनी टीका अ. १९ मृगापुनचरितवर्णनम् । किंचमूलम्--उपहाभितत्तो सर्पतो, असिपंतं महावण । असिर्फत्तेहि पेंडतेहि, छिन्नंपुब्यो अणेगंसो ॥६॥ छाया-उष्णाभिनतः सम्प्राप्तः, असिपत्र महापनम् । असिपः पतदि-जित्नपूर्व. अनेक्शः ॥६०॥ टीका--'उहाभित्ततो' इत्यादि । है मातापितरौ ! नरके उप्णाभितप्त -उपणेन बजबालादि सम्बन्धिना तापेन अभि-अमित.-समन्तात्तप्तोऽह छायार्थी असिपत्रम्-असि-खड्ग , भेडक तया तत्सदृशानि पत्राणि यस्मिंस्तत्तभृत महावनम् सम्प्राप्त । तत्रासिपत्र महावने पतद्भिरसिपत्रैः सद्गवत्तीणैः पौरने का अनन्तवार छिनपूर्व पूर्व छिन्न.-छेदित. ॥६॥ किं चमूलम्---मुग्गरेहि मुसढीहि, सूलेहि मुसलेहि य । गयांस भग्गगत्तेहिं पत्त दुक्खमणतसो ॥६॥ किं च-'उण्डाभितत्तो' इत्यादि । अन्वयार्थ हे माततात । नरक मे जब में (उपहाभितत्तो-उष्णाभितप्त.) गर्मी से अत्यत सतप्त हो जाता तब छाया का अमिलापी हावर (असिपत्त महारण सपत्तो-असिपत्र महावन सम्प्रासः) असिके समान तीक्ष्ण नूकीले पत्ते वाले महावन मे जाकर ज्योही पहुँचता कि वहा (पउतेहिं-पत्तद्भिः) गिरते हुए उन (असिपत्तेहि-असिपत्र.) असि पत्रों द्वारा (अणेगसो-अनेकश) अनेक प्रकार से (छिन्नपूवो-छिन्न पूर्व.) मै पहिले भवों मे छेदित कर दिया जाता था ॥६॥ यि–'उपहाभितत्तो" त्याह। सन्याय:- माता पिता न२४मा यारे हु उहाभिततो-उप्णाभितप्त सभीथी मत्यत मा गयो त्यारे छायानी यमा असिपत्त महावण सपत्तो-असिपत्र महावन सम्पात तलवारनी भार वा तादा पाव पृक्षाना महापनमा ४६ पहा-या, न्यारे हुत्या पडायतो त्या पडतेहिं-पतदि आउ ५२वीमरता तीक्ष्य असिपत्तेहि-असिपत्रे पाहायोथी अणेगसो-अनेन्शा A२४ ॥२ छिन्नपुव्यो-डिन्नपूर्व मामा मामा हु छाये तो ॥ १० ॥
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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