SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 648
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३० उत्तराध्ययनस छाया-गणाया जान पान, माही तरणी नदीम् । जल पियामीति नियन, पुरधारामिनापारिन ||५९।। टीका-'तण्डा इत्यादि । हे मातपितरी ! नरके तृष्णया-पिपासया साम्पन-विधमानो पात्रमान ___=इतम्ततो भ्राम्यन्नह चैतरणी तरणी नाम्नी नहीं प्राप्त तरणी नदी तट समागत । तन जठ पिरामीति चिन्तयन यायनह सुरधारामि.-सुरधारा तुल्पार्वितरणीजलोमिभिप्पादित तः। अय भार-नरके फर्थितोऽह पिपासाकृलितस्तदुपशमनार्थ जल गपयन चतरणीनदीतटे ममागतः। तत्र यापनल पात प्रवृत्तस्तापत्रमारातत्यर्यतरणोजरकहारह इत इति । तर णीनद्याजल हि शुरधारामाय गारेटकमम्तीति विजेयम् ॥५९॥ इस प्रकार कर्थित होने से प्यास लगने पर जो हमा सो कहते है-- 'तण्डा किलो इत्यादि । ___ अन्वयार्थ हे माततात ! इस प्रकार कर्षित होने पर मुझे प्याम सताती थी तय (तण्हा फिलतो-तष्णया सायन) उस प्यास से खेदखिन्न हुआ में (धावतो-पावन्) पानी की तलाश में इतस्तत: दोडता और (वेयरणिं न पत्तो-चैतरणी नदी प्राप्तः) वैतरणी नामकी नदी को देवकर उस पर प्यास बुझाने के लिये जा पहुंचता। वहा पहुचते ही ज्यों ही मैं (जल पाहति चिंततो-जल पिनामीति चिन्तयन् ) पानी पीने की चाहना करता कि इतने में ही (खर धाराहि विवाइआ. क्षरधाराभि व्यापादित) क्षरा की धोरा समान तीव्ण उमकी लहरा द्वारा मेरा चूर चूर कर दिया जाता था। इस नदीका जल क्षुराका धाराके समान गले को फाडनेवाला है ॥५॥ આ પ્રમાણે કદર્શિત થવાથી તરસ લાગવાથી શું થયું તેને કહે છે– "तहा किलतो" या અન્વયા–હે માતાપિતા ! આ પ્રકારે કદર્શિત થવાથી જ્યારે મને ખૂબ જ तरस खासी त्यारे तण्डा किलतो-तप्णया काम्यन तरसथी महभिन्न यथेसाई धावतो-धावन् पाए शधा भाटे महीतही होता भने वैयरणि नइ पत्तोवैतरणि नदी प्राप्त वैतरणी नामना नही धन तरस शान्त ४२वा या १० पहाच्या जल पाहति चिंततो-जल पिवामीति चिन्तयन् पाणी पीवाना तथा अरतेसंत थेटमामा सुर धाराहि विवाइओ-क्षुरधाराभि व्यापादित छ ધાર જેવી એની તી લહેરથી મારે ચૂરેચૂરો કરી નાખવામાં આવતા આ અgિ પાણી છરાની ધારના જેવુ ગળાને ચીરી નાખે તેવું હોય છે કે ૫૯ છે છની
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy