SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ उत्तराध्ययनसत्रे ततो राजा यत्कृतपास्तटाहमूलम्-आस विसर्जडत्ताण, अणगारस्स सो नियों। विगयेण वदई पाए, भगव । एत्थे मे"खमे" छाया-अश्व विसृज्य खलु. अनगारस्य स नृपः। नियेन चन्दते पादौ, भगवन् ! अत्र मे क्षमस्व ॥८॥ टीका-'आस' इत्यादि : स सजयनामा नृप अश्व विज्य-विमुन्य गर्दभालेरनगारस्त पादौ पिनयन -मविनय वन्दते ब्रवीति च-हे भगवन् ! अन मृगाये जात ममापराध क्षमस्व ||८|| ततः स्मिभूदित्याहमूलम्--अहे मोणेणे सो भर्गव, अणंगारे झाणमस्सिओ। रायाणं णं पडिमते, तओं"राया अयर्दुओ ॥९॥ छाया- अथ मौनेन स भगवान् , अनगारो न्यानमाश्रितः । राजान न प्रतिमन्नयति, ततो राजा भयद्रत. ॥९॥ केन) घातको मृगोको नहीं मारा है किन्तु (मणा-जनाक) व्यर्थ ही उन (अगगारो-अनगारः) मुनिराजको (आहओ-आहतः) मारा है ॥७॥ फिर राजाने क्या किया सो कहते हैं-'आस' इत्यादि । अन्वयार्थ-(सोनियो-स. नृपः) उस राजाने (आसविसजडत्ताण-अश्व विमुज्य खलु) घोडेको छोडकर (विणयेण-विनयेन) बडे विनयके साय (अणगारस्त पाए वदह-अनगारस्त पादौ वदते) उन मुनिराजके दोनो चरणोंमे अपना मस्तक झुका दिया और कहने लगा (भगवभगवन् ) हे नाथ । (पत्य में स्वमे-अत्र में क्षमस्व) इस मृगवधसे होनेवाले मेरे अपराधको आप क्षमा करे ॥८॥ उद्यानभा मेवा अणगारों-अनगारो भुनिराजने आहओ-आहत भारेख छ ॥७॥ __म पछी रात शु ४युत ४९ छ -"आस" त्याहि मन्वयार्थ --मा प्रस्नो भनमा पश्चातापरता सो नियो-स नृप थे रामे आम विसज्जइत्ताण-अश्व विसृज्य खलु घोडाने छानविणएण-विनयेन धा विनयनी साथै अणगारस्स पाए वहइ-अनगारस्य पादौ वन्दते से निराश नायरामा पोतानु भ-१४ ची हीधु सने वा भाउयु, भगव-भगवन् नाथ । एत्थमे ग्वमेअत्र मे क्षमस्व मा भृशमा यथी थयेटर भा२१ म५सधन ...... ...... ... ... ....
SR No.009354
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages1130
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy