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________________ ७७४ - सराध्ययनसून शोकभाग्भाति । तया धर्म-शुभानुष्ठानम् , अकत्या परस्मिंश्च लोके शोचवि शोफभाग्भाति । उक्त चान्यत्रापि इह शोचति प्रेत्य शोचति, पापकारी उभयन शोचति । पाप मया कृतमिति शोचति, भूयः शोचति दुर्गतिं गतः ॥ इति । अय भाषः-दुर्लभमिद मानुप जन्म समासाथ यो नैरन्तर्येण न धर्ममा चरति, स मृत्यु मुखे निपतितः सन् नितरां सिद्यते, मृत्वा च नारकादियोनि प्राप्तो दशविधा सद्यासातावेदनया दुःखितः सन्-'मया कय न देन पुण्य कृतम्' इत्येव मनुशोचन खियते ।अतश्चारित्र गृहाण । अनेने नि श्रेयससिद्धिर्भविष्यतीति ॥२१॥ मुखोपनीतः) मृत्यु के मुख मे जय पहुँचता है तन (अम्मिलोग सोयाअस्मिन् लोके शोचति)इस लोक में तो शोक करताही है परन्तु (परम्मिलोए-परस्मिन् लोके अपि) जर परलोक में भोजाताहै तब भी (धर्म अकाऊण-धर्म अकृत्वा)मैंने धर्म नहीं किया है ऐसा विचार करके रातदिन चहा दुखी होता रहता है । अन्यत्र भी इसी बात की पुष्टि की गई है " इह शोचति प्रेत्य शोचति, पापकारी उभयत्र शोचति । पाप मया कृतमिति शोचति, भूयः शोचति दुर्गतिं गतः ॥ तात्पर्य इसका यह है कि दुर्लभ इस मनुष्य भव को प्राप्त करके भी ज़ो। निरन्तर धर्मका आचरण नहीं करता है, वह जर मृत्यु के मुख मे पतित हो जाता है तब अत्यत खेदखिन्न होता है और मरकर नैरयिक आदि की योनि में प्राप्त होकर दश प्रकार की असह्य असाताजन्य क्षेत्रवेदना को भोगता हुआ दुःखित होता रहता है। विचारता है कि हाय मैंने उस नीतो-मृत्युमुसोपनीत मृत्युना भुपमा यारे पाये छ त्यारे अम्मिलोए सोयईअस्मिन्लोके शोचति मामा ४२ छ ५२ परम्मि लोए-परस्मिन् लोके अपिल्यारे परखामा तनय छ त्यारे ५६५ धम्म अकाउणा-धर्म अकृत्वा મે કોઈ ધર્મ કરેલ નથી એવા વિચારમાં રાત અને દિવસ ત્યા તે મા, રહ્યા કરે છે અન્યત્ર પણ આ વાતને પુષ્ટી અપાયેલ છે, " इह शोचति प्रेत्य शोचति, पापकारी उभयत्र शोचति । पाप मयाकृतमिति शोचति, भूयः शोचति दुर्गतिं गतः॥" તાત્પર્ય એનું એ છે કે, દુર્લભ એવા આ મનુષ્યભવને પ્રાપ્ત કરીને પર્ણ જે નિરતર ધર્મનું આચરણ નથી કરતા તે જ્યારે મૃત્યુના મુખમાં પડે છે ત્યારે અત્યત દુ ખ અનુભવે છે અને મરીને નરક આદિની નિને પ્રાપ્ત કરી ને દશ પ્રકારની અસહ્ય અસાત જન્ય ક્ષેત્રવેદને ભેગવતા ભોગવતા દુ ખીત થતું રહે છે ત્યારે તે વિચારતા હોય છે કે હાય મે એ સમય કે જ્યારે હું
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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