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________________ आपणावाब ६५० जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव-महोरगाइएहि देवगणेहि निग्गयाओ पावयणाओ अणडकमणिजा, निग्गये पावयणे णिस्तकिया णिकसिया निवितिगिच्छा लहा गहियहा किंनर-किंपुरुप-गरुड-गधर्व-महोरगादिक -ता देया मासिका अमुरा =अमुसुमारा, नागा =नागकुमारा , अमुग नागा इमे उगये गमापतय, यक्षा राक्षसा किनरा किंपुरुषा -एते चवारो व्य तविशेषा , गरुडा - गरुडभ्यना - सुपर्णकुमारा भवनपात विशेषा, गर्वा महोरगाथ व्यतरविशेषा, तप्रभृतिमि देवगण 'निग्गयाओ पावयणाओ' ने थात् प्रवचनात् 'अणइकमणिना' अनतिक्रमणीया =अचालनीया - निम्र थप्रवचनात् तान् चालयितु देवादयोऽप्यसमर्थ इति भाव । 'निग्गये पावणे' नैफेथे प्रवचने 'निस्सकिया'शविता -शवारहिता , 'निखिया' निष्काङ्क्षिता = परमतानभिलापिण, 'नियितिगिच्छा' निविचिकित्सा - फल प्रति संदेहवजिता । 'लट्ठा' लब्धार्था -अर्थश्रवणात् , 'गहियट्ठा' गृहीतार्था -अर्थावधारणात् , 'पुच्छिरक्खस-किंनर-किंपुरिस-गरुल-गध-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गयाओ पाव णयाओ अणइकमणिज्जा) देव, असुरकुमार, नागकुमार, यक्ष, राक्षस, किंनर, किंपुरुष, गरुड, सुपर्णकुमार, गधर्व एव महोरग इत्यादिक देवगणों द्वारा भी जो निर्मथ प्रवचन से एक बाल भी विचलित नहीं किये जा सकते है, (निग्गथे पावयणे हिस्सकिया णिक खिया णिव्यितिगिच्छा लट्ठा गहियद्वा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा) निम्र थप्रवचन में जिनकी श्रद्धा नि शकित है, निष्काक्षित है-परमत की ओर जिनके हृदय में जाने का अथवा उसे सराहने आदि की थोड़ी सी भी अभिलापा नहीं है, निर्विचिकित्सागुण से जा भरपूर है, फल के प्रति जिनकी श्रद्धा सदेह से सर्वथा रिक्त है, जो लब्धार्थ है, गृहीताथ पाषणयाओ अणइयमणिज्जा) हेव, मसुरशुभार, नागभार, यक्ष, राक्षस, કિનર, કિ પુરુષ, ગરુડ, સુપર્ણકુમાર, ગ ધર્વ તેમજ મહારગ ઇત્યાદિક દેવ ગણે દ્વારા પણ જે નિર્ચ થ પ્રવચન વડે એક વાળ જેટલા પણ વિચલિત ४श शाता नथी, (निग्गथे पायवणे णिस्सकिया, णिकसिया णिव्वितिगिच्छा लद्वदा गहियद्वा पुन्छियट्ठा अभिगयट्ठा) निन्य अवयनमा भनी श्रद्धा नि શકિત છે, કાક્ષા વગરના છે–પરમતની તરફ જવાની જેમના હૃદયમાં અભિ દ્વાષા જરા પણ નથી, અથવા પરમતની પ્રશ સા આદિ કરવાની કિ ચિત પણ અભિલાષા નથી, નિર્વિચિકિત્સા-ગુણથી છે ભરપૂર છે ફળના તરફ
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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