________________
पीयूषवर्षिणी टीका ६२ अल्प रम्भादिमनुष्य विषये भगवद् गौतमयो सपाद ६४९ सकलकर्मक्षये सति जीनस्य कर्ममयोगापादितस्परहितस्य साद्यपर्यवसानम् अन्यानाधमचस्थानम, उक्त च
नीसेसम्म गिमोक्सो जीवस्स मुद्धररस्स | साइणपज्नवसाण अव्वानाह अवत्थाण ॥ १ ॥ गया - निःशेषकर्मनिगमो मोक्षो जीवस्य शुद्धरूपस्य । साधपर्यवसानम् अत्र्यानाधम् अवस्थानम् ॥ इति ॥
तेपा द्वन्द्व, तत्र कुशला, आस्रवादीना हेयोपादेयतास्वरूपज्ञानिन इत्यर्थ, 'असहेज्जा' असाहाय्या - अविद्यमान साहाय्य - देवादिसाहाय्य स्वस्यैव धर्मजनितसामर्थ्यातिशयात् येषा ते तथा, यद्वा-स्वय कृत कर्म स्वयमेव भोक्तव्यमिति ज्ञात्वा मनोदौर्नल्याभावात् परसाहाय्यानपेक्षा इत्यर्थ । ' देवासुर-नाग-जक्ख- रक्खस - किंनरकिंपुरिस - गरुल - गधव - महोरगाउएहिं देवगणेहिं ' देवा - सुर-नाग - यक्ष-राक्षसअयत-आयन्तिक-क्षय का नाम मोक्ष है । समस्त कमी के क्षय होने पर उनके सयोग से आपादित मूर्तित्व का शान ही पर्यवसान जान म हो जाता है, इससे अमूर्तिवरूप स्वभाव का प्राचुर्य होने से उसका अन्यानाधरूप से अपस्थान हो जाता है। कहा भी हैसमस्त कर्मों का निगम ही मोक्ष है और वही जीव का शुद्ध स्वरूप है, इस स्वरूप के प्राप्त होते ही जान का अवस्थान अत्र्यावाधरूप से आत्मा म हो जाता है। जो " असाहाय्या" हैं अर्थात् धर्मजनित सामर्थ्य के अतिशय से देवानिकों का सहायता की स्वप्न में भी इच्छा नहा रखते हैं, अथवा अपने द्वारा कृत शुभाशुभ कर्म आत्मा स्वय ही भोग करता है दूसरों की सहायता इसम कार्यकारी नहीं हो सकती - इस प्रकार की मानसिक दृढता के कारण जो दूसरों का सहायता की थोडी सा भा पवाह नहीं करते है । (देवा-सुर-नाग - जक्खસમસ્ત કર્મોના ક્ષય થવાથી તેમના ઞયાગથી આપાદિત મૂર્તિત્વનુ તરત જ પવસાન જીવમા થઈ જાય છે તેથી અમૃતિસ્વરૂપ પેાતાના સ્વભાવનુ પ્રાચ ચવાથી તેનુ અવ્યાખાધરૂપથી અવસ્થાન થઈ જાય છે કહ્યુ પણ છે સમસ્ત ૌનુ વિગમ એજ મેક્ષ છે, અને એજ જીવનુ શુદ્ધ સ્વરૂપ છે આ સ્વરૂપને પ્રાપ્ત થતા જ જીવનુ અવસ્થાન આવ્યાબાધ રૂપથી આત્મામાં થઈ लय छे 'असाहाय्या' छे अर्थात् धर्भथी उत्पन्न थता भाभर्थ्यांना अतिशयथी દેવ ાદિકાની સહાયતાની સ્વપ્નમા પણ ઈચ્છા રાખતા નથી અથવા પોતાના દ્વારા કરાયેલા શુભ અશુભ મ આત્મા. પેાતે જ ભેગવે છે, ખીન્દ્રની સહા યતા એમા કામ આવી શતી નથી આ પ્રકારની માનસિક દૃઢતાના કારણે के भीन्ननी सहायतानी भरा भए परवाह उरला नथी ( देवा-मुर-नागजक्स-सस- किंनर - किंपुरिस-रुल-व्य-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निगथाओ