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________________ मियदर्शिनी टीका अ० ४ गा ३ अभुतकर्मणा न निर्जरणम् २३ छाया-स्तेनो यथा सन्धिमुखे गृहीतः, स्वकर्मणा कृत्यते पापकारी । ___एव प्रजा प्रेत्य इह च लोके, कृताना फर्मणा न मोक्षोऽस्ति ॥३॥ टीका-'तेणे' इत्यादि। यथा पापकारी-पापकर्ता, स्तेना=चौरः, सन्धिमुखे क्षात्रमुखे, गृहीतः सन् स्वकर्मणा कृत्यते-छिद्यते । एवम् अनेन प्रकारेग, प्रजा-नीवः, प्रेत्य-परलोके, च-पुनः, इह लोके स्त्रकर्मणा कृत्यते इत्यन्वयः। परलोकेऽनेकनरकवेदनया-परमाधार्मिकादिकृतव्यथया पीड्यते, इहलोके च-बनार्जनार्थ क्षुत्पिपासाशीतातपसहनपर्वतारोहणजलधितरणनृपसेवनयुद्धमहारसहनादिक्लेशेन च पीड्यते इति भावः । यतः कृतानाम् उपार्जिताना, कर्मणा मोक्षो नास्ति । उक्तञ्च किये हुए कर्म निष्फल नहीं होते हैं इस बात को समझाने के लिये सूत्रकार कहते हैं-'तेणे'-हत्यादि । अन्वयार्थ (जहा पावकारी-यथा पापकारी) जैसे पाप करनेवाला (तेणे-स्तेनः) चोर (सधिमुहे-सधिमुखे) ग्वातर के बीच में ही (गहीए-गृहीतः सन् ) पकडा जाकर ( किच्चइ-कृत्यते) पकड ने वाले के द्वारा काट दिया जाता है-मारा जाता है (एव) इसी प्रकार (पया-प्रजा) जीन (पेच्च-प्रेत्य) परलोक में परमाधार्मिकादिद्वारा दी गई व्यथा से एव अनेक नरकसबंधी वेदना से पीडित होता है, तथा (इह च लोए-इह लोके च ) इस लोक में धन के उपार्जन करने के निमित्त क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, इनका सहन करना, पर्वत पर चढना, समुद्र का पार करना, राजा की सेवा करना, युद्ध में प्रहारो का सहन करना आदि रूप जो क्लेश हैं उनसे सदा पीडित होता रहता है। ४२सा नि०५ यता नथी, मे पातने समनपा सूत्र४२ ४से छ-'तेणे-त्याह भन्या - जहा पावकारी - यथा पापकारी रेपी श ५ उरनार तेणे-स्तेन यार सधिमुहे-संधिमुखे यारी ४२ता ४ गहीए-गृहीत सन् ५४४ सता तेने ५४नारामा २ किच्चइ-कृत्यते ४पी भारी नामे छे एव सर मारे पया-प्रजा ने पेच्च-प्रेत्य ५२सभा ५२माधार विगेरे तन व्यथा પહોચાડે છે અને અનેક પ્રકારે નરકાદિક સ બ ધી વેદના તેને ભોગવવી ५ छ तथा इह च लोए-इहलोके च मा ५४ धन पान ४२१॥ નિમિત્તે ભૂખ, તરસ, ટાઢ, તડકે સહન કરવો પડે છે પહાડ ઉપર ચઢવું સમુદ્રનુ પાર કરવું, રાજાની સેવા કરવી, યુદ્ધમા પ્રહારે સહેવા, વિગેરે જે ४वेश छ तनाथी सपा पीडित यता २ छ, कडाण कम्माण न मोक्ख अस्थि
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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