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पीयूषषषिणी-टीका सू ४६ अपडपरिग्राजय विषये भगयगौतमयो सबाद ६०९ .. ४७, पडिचारं ४८, वूह ४९, पडिवूह ५०, चकबूह ५१, गरुलवूहं स्कधावारमान-शनु विजेतु कदा कियपरिमित सैन्य निवशनीयमिति प्रमाणविज्ञानम् । 'खधारमाण' इत्यत्र समवायाङ्गोक्तस्य 'सधावारणिस' दयस्य समावेश 'नगरमाण' नगरमानम्-अस्मिन् प्रदेशे कीदृशमायामदैव्योपलक्षित नगर निर्मापणीय, येन विनयशाला भवेयम्, कस्य वर्णस्य कस्मिन् स्थाने निवंग श्रेष्ठ इति विज्ञानम्, 'नगरमाण' दयन समवायागोक्तस्य 'नगरणिवेस' इत्यस्य समावेग ४६, 'चार' चार-योतिश्चारविज्ञानम्। 'चार' इत्यत्र समनायाद्गोक्ताना 'चदलसण' मुरचरिय, राहुचरिय, गहचरिय' दयेतेपा चतुर्णा समावेश ४७, 'पडिचारं' प्रतिचार-प्रतिवर्तितचारम्-इप्टानिष्टफलजनकगान्तिकमादिक्रियाविशेषविज्ञानम, 'पडिचार' इत्यत्र 'सोभागकर, दोभागकर, विनागय, मतगय, रहस्सगय, सभासचार' इत्येतेपा समवायागोक्ताना पण्णा समावेश ४८, 'चूह' व्यूह-गकटयाकृतिसैन्यरचनम् ४९, 'पडिजीतने के लिये कितनी सेना होनी चाहिये इस प्रकार सेना के परिमाण को जानने की, यहाँ पर समनायाग म उक्त 'वधापारणिवेस' स्कन्यावारनिवश का समावेश होता है। (४६ नगरमाण) इस प्रदेश म कितना लगा कितना चौडा नगर बसाना चाहिये जिससे मै विजयशाला हो सकू तथा किस वर्ण को किस स्थान म वसाना श्रेष्ठ होगा इन सन नातो के विज्ञान की, समायान मे उक्त 'नगरनिवेस' नगरनिवेश का अतभाव ग्रहों पर हो जाता है। (४७ चार) ज्योतिश्चक्र की, समायाग मे कथित (चदरक्षण) चद्रमा के लक्षण, (मूरचरिय राहुचरिय गहचरिय) सूर्य की चाल, राहु का चाल एवं ग्रहों की-चाल, इन समों का समा-- वश 'चार' मे समझना चाहिए । (४९ पडिचार) इष्टानिष्टफलजनक शान्तिकर्म आदि क्रियाविशेषों के पिनान का, यहाँ समयायाग कथित “सोभागकर दोभागकर विनागय मतपान्तु (घ२) शनी, सभपायाभL Sxt "वत्थुमाण पत्थुनिवेस" वास्तुमान तेभा पास्तुनिवेशी समावेश गडी थाय छे ४५ (सधारमाण) शत्रुने જીતવા માટે કેટલી બેના હોવી જોઈએ, એ રીતે સેનાના પરિમાણને (ગણતરી) नथुपानी, समपायामा Grd 'सधागारनिवेम' थापा२निवेशन। २०ी ५२ समावेश थाय , ४. (नगरमाण) मा प्रवेशमा सामु भनेन्दु પહેાળું નગર વસાવવું જોઈએ કે જેથી હું વિજયશાળી થઈ શકુ તથા કથા વર્ણ (જાત) ને ક્યા સ્થાનમાં વસાવવુ થશે એ બધી વાતોના
विज्ञाननी, सभषायाममा त 'नगरनिस' ना२निवेशगानी समावेश । मी यो ले ४७ (चार) यातिनी, सभवायागमा उस