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___ पीयूषयपिणी-टीया ५ ३२ अधडपरिवारविषये भगवद्गीतमयो सपाद ५८१
मृलम्-पह ण भते। अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाण अतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पव्वइत्तए । सू० ३२॥
मूलम्---णो इण? समझे गोयमा । अम्मडे ण परि
गौतम पृच्छति-'पह ण भते' इत्यादि । 'भते !' हे मदत । 'अम्मडे परिवायए देवाणुप्पियाण अतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अणगारिय पबदत्तए' अन्बड परिवाजको देवानुप्रियाणामन्तिके मुण्ड =लुम्चितकेगो भूवाऽगारादनगारिता-साधुत्व प्रत्रजितु प्राप्तुं 'प्रभू ण' प्रभु =ममर्थ किम् : 'ण' इति वाक्यालारे ॥ सू० ३२ ॥
टीका-भगानाह-'णो दणद्वे समढे गोयमा "इयादि । 'णो इण? समढे गोयमा नाऽयमर्थ समयों गौतम ! 'अम्मडे ण परिचायए समणोवासए' अम्बड खल
'पह ण भते । अम्मढे परिवायए' इत्यादि।
(मते) है भन त ! (अम्मढे परिवायए) यह अम्बट परिव्राजक ( देवाणुप्पियाण जतिए ) आप के पास (मुढे भवित्ता) मुटित होकर (अगाराओ) आगार
अपस्या से (अणगारिय) अनगार अपस्या को (पन्नात्तए) धारण करने के लिये __ (पह ण) समर्थ है क्या ? ॥ मु० ३२॥
_ 'णो दणद्वे समढे ' इत्यादि।
प्रभु ने कहा--(गोयमा) हे गौतम ! (णो दणद्वे समढे) यह अर्थ समर्थ नहीं है। ___ क्यों कि (अम्मडे ण परिवायए) यह अम्बड परित्राजक (समणोवासए) श्रमणोपासक
'पह ण भते । अम्मडे परिवायए' त्या
(भते) महन्त। (अम्मडे परिव्यायए) मा म परिना। (दवाणुप्पियाण अतिर) सापनी पाये (मुडे भवित्ता) भुखित यधने (अगाराओ) मगार सवस्याथी (अणगारिय) मानसार अस्थाने (पव्यइत्तए) पार उपाने भाट (पट ण) समर्थ छ उ उभ? (सू. ३२)
"णो इण? समढे" त्यादि
प्रभुमे यु (गोयमा) हे गौतम (णो इणद्वे सम) मा अर्थ समर्थ नथी, उभ (अम्मड़े ण परिवायए) मा मन परिधान (समणो