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________________ - भोपपातिकसूत्र समुप्पण्णाए जणविम्हावणहेडं कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ। से तेणटेण गोयमा। एव बुच्चड-अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेड ॥ सू०३१॥ से अम्मडे परित्यायगे' तत सल स अम्बड पग्निाजक , 'तीए पीरियलद्वीए वेउन्विय लद्धोए ओहिणाणलद्धीए समुप्पण्णाए' तयावीर्यल या क्रियल च्याऽवधिज्ञानल या च समुत्पन्नया 'जणविम्हापणहेउ' जनविस्मापनहेतो, 'कपिलपुरे गयरे घरसए जाव वसहि उवेइ ' काम्पियपुरे नगरे गृहशते यावद्वसतिमुपैति, ‘से तेणढणं गोयमा ! एव घुचइ' तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते- अम्मडे परिवायए कपिलपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ' अम्बड परिवाजक काम्पिल्यपुरे नगरे गृहशते यावद्वसति मुपैति ।। सू० ३१ ॥ अम्मडे परिवायगे तीए वीरियल्द्धीए वेउनियल्दीए ओहिणाणल्द्धीए समु प्पणाए ) इसके बाद उत्पन्न हुई उन वीर्यलब्धि, वैक्रियलब्धि एव अवधिज्ञानलब्धि द्वारा यह (जणविम्हावणहेउ ) मनुष्यों को आश्चर्यचकित करने के लिये (कपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ) कपिल्ल नगर में सौ घरों से भिक्षा करता है, एव उन्हीं में विश्राम करता है। (से तेणद्वेण गोयमा! एव वुचइ ) इस आशय से, हे गौतम ! मै ऐसा कहता हू (अम्मडे परिवायए कपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेइ) फि अम्बड परिव्राजक कपिल्लपुर नगर मे सौ घरा में आहार करता है और सौ घरों मे निवास करता है ॥ सू० ३१ ॥ "Gul 25 (तए ण से अम्मडे परिवायगे तीए वीरियलद्धीए चेउव्वियलद्वीए ओहिणाणलद्धीए समुप्पणाए) त्या२ पछी उत्पन्न थयेसी ते वायधि , वडियसधि तभ० मवधिज्ञानधि द्वारा से (जणपिम्हावणहेउ) मनुष्याने पाश्चय यति ४२११ माटे (कपिल्लपुरे णयरे घरसए जाव वसहि उवेड) पिसपुरनगरमा सो धराथी लिक्षा ४२ छ तेमन्त मा विश्राम ४२, (से तेणद्वेण गोयमा । एर चुच्चइ) साशयथी हे गौतम! ६ अभ ४९ छु (अम्मडे परिव्वायए कपिल्लपुरे घरसए जाव वसहि उवई) 2 અખડ પરિવ્રાજક કપિલપુર નગરમાં તે ઘરમાં આહાર કરે છે અને જે ઘરમાં નિવાસ કરે છે (સૂ૦ ૩૧)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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