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________________ - - - पीयूषषिणो-टोकास ३० अम्बड परिमाजकविषये भगवद्गीतमयो सयाद ५७७ मूलम्से केणटेणं भते । एव वुच्चइ-अम्मडे परिवायए जाव वसहि उवेड ॥ सू० ३०॥ मूलम्-गोयमा । अम्मडस्स णं परिवायगस्स पगइभद्दयाए जाच विणीययाए छहछटेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेण टीका---पुनर्गौतम पृष्ठति-से केपटेण' इत्यादि । ' से केणवण भंते । एव बुचड' तत् केनायेंन हे मदत ' एवमुध्यते-'अम्मढे परिवायए जान सहि उवेइ' अम्बड परिवाजको यावद् वसतिमुपैति, गृहराताभिक्षा करोति, गृहशत वसति स्वीकरोति, इति ॥ सू० ३०॥ टीका--भगवानाह-'गोयमा" इत्यादि। है गौतम । 'अम्मडस्स ण परियायगरस पगइभदयाए ' अम्बदस्य खलु परिबाजकस्य प्रकृतिभद्रतया-प्रकृते = स्वभावस्य मदतया सरलतया 'जाव विणीययाए ' यावद्विनीततया-यानच्छन्दादिद दृश्यप्रकृन्युपगततया प्रकृतितनुमोधमानमायालोभतया मृदुमार्दवसम्पनतयाऽऽलीनतया इति, ‘से केणटेण' इत्यादि। (भते) हे भदन्त । (से केणद्वेण एव बुचइ) आप यह किस आशय से कहते हैं कि-(अम्मडे परिवायए जाव वसहि उवेद) अम्बड परिवाजक सौ घरों में आहार करते हैं और सौ घरों में निवास करते है ।। सू ३०॥ 'गोयमा ! अम्मडस्स ण' इत्यादि। (गोयमा) हे गौतम ! यह अम्बड परिव्राजक (पगइभदयाए जाब विणीययाए) प्रकृति से भद्र है, अप क्रोध, मान, माया एव लोभ-कपायवाला है, स्वभावत 'से केणद्वेण' त्या (भते 1 ) महन्त ! (से केणट्रेण एव बुचइ) साम से या तुथी 68 13--(अम्मड पग्व्यिायए जाव घसहि उइ) २५ परिमा से! ઘરમાં આહાર કરે છે અને સે ઘરમાં નિવાસ કરે છે? (સૂ ૩૦) 'गोयमा । अम्मदस्स ' त्यहि (गोयमा ) हे गौतम । मा सम परिवार (पगइभद्दयाए जाव विणीयया) अतिथी मद , ५ोध, मान, भाया, तेभन दोन કષાયવાળા છે, સ્વભાવત મૃદુ-માર્દવ ગુણથી યુક્ત છે, તથા અત્યંત વિનીત -- - - -
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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